Raksha Bandhan 2021 | shayari | history | शुभ मुहूरत 2021

Raksha bandhan

नमस्कार दोस्तों 🙏🏻 स्वागत है आपका आज के इस लेख मे. अब रक्षाबंधन बंधन ना सिर्फ भारत मे बल्कि विदेशों मे भी धूम धाम से मनाया जाने वाला हिन्दुओं का एक पवित्र और महत्वपूर्ण त्यौहार है.

भारत मे लोग! रक्षाबंधन को अलग अलग स्थानों राज्यों एवं भाषाओं के आधार पर कई नामो से जानते है. पर बेसिकली इस त्यौहार को रक्षाबंधन के नाम से ही अधिक जाना जाता है.

आज हम आपको रक्षाबंधन की सभी जानकारी विस्तार से देंगे आज हम जानेंगे की –

  • रक्षाबंधन कब है?
  • रक्षाबंधन का शुभ मुहूर्त कितने बजे से कितने बजे तक है.
  • रक्षाबंधन मनाने का सही तरीका क्या है?
  • रक्षाबंधन क्यों मनाया जाता है? इसके पौराणिक एवं धार्मिक महत्त्व.

रक्षाबंधन शब्द का अर्थ 

रक्षाबंधन दो शब्दों से मिलकर बना है रक्षा और बंधन. यानी रक्षा का बंधन. लेकिन यह अर्थ यही तक सिमित नहीं है रक्षा बंधन भाई बहनो के बीच पवित्र प्रेम और अटूट बंधन को दर्शाता है.

 

कैसे मनाया जाता है Raksha Bandhan

इस दिन बहने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बाँधती हैं, और भाई अपनी बहन की रक्षा का वचन देते है और अपनी ख़ुशी से बहनो को तोहफ़े के रूप मे तरह तरह की वस्तुए भेंट करते है.

 

इस दिन बहन सुबह ही स्नान कर तैयार हो जाती है ।

 

इसके बाद वह थाली में आरती का सामान सजाकर भाई की आरती उतारती है और भाई के माथे पर तिलक लगाकर उसके दाहिने हाथ की कलाई पर राखी बांध देती है ।

 

साथ ही भाई का मुंह मिठाईयों से भर देती है और अपने भाई की लंबी आयु की कामना करती हैं।

 

वही  भाई  भी अपनी बहन को उसकी रक्षा का वचन देता है और बहन को वस्तुओ के रूप मे प्रेम स्वरूप सुंदर भेट प्रदान करता है । 


 

2021 Raksha Bandhan  किस दिन है?

राखी का त्‍योहार इस बार रविवार 22 अगस्‍त, के दिन है.

Raksha bandhan date – sunday, 22 August

 

रक्षा बंधन शुभ मुहूरत – Raksha bandhan  shubh muhoorat-2021

22 अगस्त को रक्षा बंधन पूजा का शुभ मुहूर्त 06 बजकर 15 मिनट सुबह से शाम 05 बजकर 31 मिनट कर रहेगा।

राखी बांधने का शुभ मुहूर्त-

ज्योतिष के अनुसार, 22 अगस्त 2021 को दोपहर 01 बजकर 42 मिनट se लेकर दोपहर से शाम 04 बजकर 18 मिनट तक है.

 

 

रक्षा बंधन मंत्र – राखी बांधते समय इस मंत्र का जप 4 से 5 बार करे –

‘येन बद्धो बलि राजा,दानवेन्द्रो महाबल: तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामि रक्षे माचल माचल:’
राखी का यह छोटा सा मंत्र है जिसे चार से पांच बार पढ़कर आप याद कर सकते हैं।

 

इसी मंत्र को पुरोहित यजमान को राखी बांधते हुए बोलते हैं। कलावा बांधते समय भी पुरोहितजी यही मंत्र बोलते हैं।

 

 

 

क्या है राखी के इस मंत्र का मतलब

राखी के इस मंत्र का मतलब है- जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी रक्षाबंधन से मैं तुम्हें बांधता हूं, जो तुम्हारी रक्षा करेगा। हे रक्षे .. (रक्षासूत्र) तुम , चलायमान न हो।

 

धर्मशास्त्र के विद्वानों के अनुसार इसका अर्थ यह है कि रक्षासूत्र बांधते समय ब्राह्मण या पुरोहत अपने यजमान को कहता है किजिस रक्षासूत्र से दानवों के महापराक्रमी राजा बलि धर्म के बंधन में बांधे गए थे.

अर्थात् धर्म में प्रयुक्त किए गये थे, उसी सूत्र से मैं तुम्हें बांधता हूं, यानी धर्म के लिए प्रतिबद्ध करता हूं। इसके बाद पुरोहित रक्षासूत्र से कहता है कि हे रक्षे तुम स्थिर रहना, स्थिर रहना।

 

इस प्रकार रक्षा सूत्र का उद्देश्य ब्राह्मणों द्वारा अपने यजमानों को धर्म के लिए प्रेरित एवं प्रयुक्त करना है। बहनें भी इसी मंत्र से भाइयों को बहनों की रक्षा के धर्म में बांधती हैं।

जरूर पढे – रक्षाबंधन पर खूबसूरत निबंध 

 

 रक्षा बंधन मनाने का सही तरीका – राखी बांधने का सही तरीका –

प्रातः उठकर स्नान-ध्यान करके उज्ज्वल तथा शुद्ध वस्त्र धारण करें।

– घर को साफ करके, चावल के आटे का चौक पूरकर मिट्टी के छोटे से घड़े की स्थापना करें।

– चावल, कच्चे सूत का कपड़ा, सरसों, रोली को एक साथ मिलाएं। फिर पूजा की थाली तैयार कर दीप जलाएं। उसमें मिठाई रखें।

– इसके बाद भाई को पीढ़े पर बिठाएं (पीढ़ा यदि आम की लकड़ी का हो तो सर्वश्रेष्ठ माना जाता है)।

– भाई को पूर्वाभिमुख, पूर्व दिशा की ओर बिठाएं। बहन का मुंह पश्चिम दिशा की ओर होना चाहिए।

– इसके बाद भाई के माथे पर टीका लगाकर दाहिने हाथ पर रक्षा सूत्र बांधे।

– शास्त्रों के अनुसार रक्षा सूत्र बांधे जाते समय निम्न मंत्र का जाप करने से अधिक फल मिलता है

 

 

राखी बांधते समय इन  बातों का रखे खास ध्यान –

  • राखी बांधते समय भाई का मुह पूर्व दिशा  की तरफ होना चाहिए |
  • राखी नहा धो कर साफ सुथरे सफ़ेद पीले वस्त्र पहन कर बंधवानी चाहिए |
  • राखी बांधते समय ऊपर बाते गए मंत्र का जप ज़रूर करना चाहिए |

 

 

रक्षा बंधन का इतिहास – history of Raksha bandhan – 

रक्षाबंधन का इतिहास हिंदू पुराण कथाओं में बताया गया है  है। वामनावतार नामक एक पौराणिक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है। वह इस त्योहार से सबंधित कथा इस प्रकार है-

 

राजा बलि ने जब यज्ञ संपन्न कर स्वर्ग पर अधिकार करने  का प्रयत्‍‌न किया, तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। की प्रभु इससे हमारी रक्षा करे ।

 

तब भगवान विष्णु जी एक वामन ब्राह्मण का अवतार धारण कर  राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंच गए।

पर राजा बली के गुरु(गुरु शुक्राचार्य) भगवान की इस माया को जन गाय थे  इसीलिए गुरु जी ने बलि को दान देने से माना कर दिया की रुको दान न दो  पर मना  करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी थी। क्योकि वामन भगवान की इस माया से अंजान था । 

 

इस प्रकार भगवान ने तीन पग में आकाश-पाताल और धरती नाप कर राजा बलि को रसातल में भेज दिया।

 

उसने अपनी भक्ति के बल पर विष्णु जी से हर समय अपने सामने रहने का वचन ले लिया। लक्ष्मी जी इससे चिंतित हो गई।

 

नारद जी की सलाह पर लक्ष्मी जी बलि के पास गई और रक्षासूत्र बांधकर उसे अपना भाई बना लिया।

 

बदले में वे विष्णु जी को अपने साथ ले आई। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। वो भी रक्षा बंधन के त्योहार का प्रतीक माना गया ।

 

इतिहास में रक्षा बंधन के और भी कई उल्लेख मिलते हैं।

जहाँपना अकबर के समय मे राजस्थान के मेवाड़ की एक घटना बहुत प्रचलित है.

मेवाड़ की महारानी कर्मावती ने मुगल राजा हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा-याचना की थी। हुमायूं ने मुसलमान होते हुए भी राखी की लाज रखी।

 

वहीं इस महान पर्व के पीछे सिकंदर पोरस युग की एक अद्भुत घटना भी औरचलित है.

कहाँ जाता हैं, की सिकंदर की पत्‍‌नी ने अपने पति के हिंदू शत्रु पुरु (पोरष) को राखी बांधकर उसे अपना भाई बनाया था और युद्ध के समय सिकंदर को न मारने का वचन लिया था।

 

पुरु ने युद्ध के दौरान हाथ में बंधी राखी का और अपनी बहन को दिए हुए वचन का सम्मान करते हुए सिकंदर को जीवनदान दिया था।

 

महाभारत में रक्षा बंधन का उल्लेख – Raksha bandhan

महाभारत में भी रक्षाबंधन के पर्व का उल्लेख है। जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी।

 

क्यो की उसमे बहने अपने भाई की रक्षा की प्रार्थना करती है ।

शिशुपाल का वध करते समय कृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई, तो द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर चीर उनकी उंगली पर बांध दी थी।

 

यह भी श्रावण मास की पूर्णिमा का दिन था। कृष्ण ने चीरहरण के समय उनकी लाज बचाकर यह कर्ज चुकाया था।

 

रक्षा बंधन के पर्व में परस्पर एक-दूसरे की रक्षा और सहयोग की भावना निहित है। एस प्रकार से पुराने काल से इस त्योहार का संबंध है ।

 

Raksha bandhan के इस लेख मे आज हमने जाना की raksha bandhan  कैसे मनाया जाता है. धार्मिक एवं पौराणिक दृष्टि से रक्षाबंधन का इतिहास क्या है.

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