kashi vishwanath mandir history in hindi

kashi vishwanath mandir history in hindi | gyanvapi maszid history | ज्ञानवापी मस्जिद बनने का पूरा इतिहास – काशी विश्वनाथ मंदिर बनने से लेकर आज तक का इतिहास.

पिछले साल जुलाई 2023 में वाराणसी जिला अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वे करने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को निर्देश दिया था। सर्वे के बाद भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग यानी एएसआई ने रिपोर्ट में कहा” वास्तु शिल्प अवशेष, और मस्जिद में मौजूद कलाकृतियां का अध्ययन करने के बाद पता चलता है, इस संरचना के पहले है यहां एक हिंदू मंदिर था।

 

लेकिन मुस्लिम पक्ष कों इस बात को लेकर कहना है की आज से लगभग 150 साल पहले से ही मुस्लिम लोग यहां नमाज पढ़ते आ रहे हैं। हालाकि इस मामले को लेकर कोर्ट में अभी भी सुनवाई जारी है, लेकिन सवाल ये उठता है क्या वाकई में वहां पहले भगवान शिव का मंदिर था या फिर मस्जिद? अगर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के सर्वे अनुसार मस्जिद से पहले वहां मंदिर था तो क्या हिंदुओं को उनका हक मिलेगा?

आखिर ज्ञानवापी मस्जिद की सच्चाई क्या है, क्या वाकई में मुग़ल शासको ने मंदिर को तोड़कर वहां मस्जिद बनवाया है,जानेंगे इस आर्टिकल में सब कुछ विस्तार से आर्टिकल को अंत तक जरूर पढ़ें।

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काशी विश्वनाथ मंदिर का इतिहास-

ज्ञानवापी मस्जिद का इतिहास बहुत विवादास्पद रहा है, और इस पर विभिन्न दृष्टिकोण हैं। इतिहास के पन्नों में देखा जाए तो इस जगह पर पहले विश्वनाथ मंदिर था। जबकि दूसरे पक्ष का कहना है यहां अकबर के पहले से ही मस्जिद मौजूद है और मुस्लिम लोग पिछले कई वर्षों से नमाज पढ़ते आ रहे हैं।

 

लेकिन हिंदू पुराणों के अनुसार आदिकाल में यहां विशालकाय मंदिर था, मंदिर में भगवान शिव की ज्योतिर्लिंग स्थापित की गई थी। तो वही प्राचीन काल के 11वीं सदी में राजा हरिश्चंद्र द्वारा विश्वनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया था। सम्राट विक्रमादित्य ने अपने कार्यकाल में इस मंदिर का पुनः जीर्णोद्धार कराया।

 

बाद में क्रूर अत्याचारी मुगल शासक मोहम्मद गौरी ने सन् 1194 में मंदिर में लूटपाट की और इसे तुड़वा दिया। सनातनी लोगों ने पुनः इस मंदिर को दोबारा बनवाया। इसके बाद सन् 1447 में जौनपुर का शासक शर्की सुल्तान महमूद शाह ने मंदिर को तुड़वाकर मस्जिद बनवा दिया। हालांकि इस बात को लेकर मतभेद है और कुछ इतिहासकारों का कहना है ज्ञानवापी मस्जिद को अकबर ने बनवाया था।

 

फिर से दोबारा सन् 1585 में पंडित नारायणन भट्ट ने राजा टोडरमल की मदद से उस जगह पर पुनः एक मंदिर बनवाया। लेकिन मुगल शासक शाहजहां ने सन् 1632 मंदिर को फिर से तोड़वा दिया। हालांकि हिंदूओं ने जमकर इसका विरोध किया, जिसकी वजह से अत्याचारी मुगल शासक मुख्य मंदिर को नहीं तोड़ सका। लेकिन मुख्य मंदिर के आसपास मौजूद अन्य 63 मन्दिरों को ध्वस्त कर दिया।

 

मुख्य मंदिर को तोड़ने के लिए औरंगजेब ने 18 अप्रैल सन् 1669 आदेश दिया, औरंगजेब द्वारा जारी किया गया यह फरमान आज भी कोलकाता के एशियाटिक लाइब्रेरी में पुस्तक के रूप में मौजूद है। जिसे इतिहासकार साकी मुस्तइद खां द्वारा ‘मासीदे आलमगिरी’ पुस्तक में लिखा गया है। पुस्तक में दिए गए तथ्यों के अनुसार मंदिर तोड़ दी गई है, इस बात की सूचना औरंगजेब को 2 सितंबर सन् 1669 को दीं गयी।

1669 मे मुग़ल आक्रमणकारी औरंगजेब ने प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर को तोड़ कर यह ज्ञानवापी मस्जिद बना दी। ज्ञानवापी एक संस्कृत शब्द है इसका अर्थ है ज्ञान का कुआं।

 

काशी विश्वनाथ मंदिर टूटने के बाद लगभग 125 वर्ष तक वहां कोई मंदिर नहीं बना, इस दौरान मुसलमानों उस जगह पर अपना आधिपत्य जमा कर रखा। लेकिन सन् 1735 में इंदौर की महारानी अहिल्याबाई देवी ने ज्ञानवापी परिसर के नजदीक भव्य काशी विश्वनाथ मंदिर बनवाया। फिर इसके बाद हिंदू पक्ष के लोगों ने सन् 1809 में उस जगह पर अपना अधिकार जताया 

जताया, जिसके बाद मामला और बिगड़ गया।

 

सन 1810 में बनारस के जिला न्यायाधीश मिस्टर वाटसन ने मुसलमानों से उस जगह को हिंदूओं को सौंपने का आदेश दिया। लेकिन मुस्लिम समुदाय के लोग इस बात के लिए तैयार नहीं हुए। 1830- 29 के आसपास मध्य प्रदेश ग्वालियर की महारानी बैजाबाई ने विश्वनाथ मंदिर का मंडप बनवाया, और नंदी के प्रतिमा को स्थापित किया। सन 1936 को ज्ञानवापी मस्जिद मामला कोर्ट में गया और फैसले में 1 साल बाद ज्ञानवापी मस्जिद के पक्ष में फैसला सुनाया गया।

 

हिंदू परिषद के लोगों ने मिलकर सन् सन 1984 में एक संगठन बनाया, जिसका मुख्य लक्ष्य ज्ञानवापी मस्जिद के जगह पर विश्वनाथ मंदिर बनाना था। हिंदू पक्ष की तरफ से हरिहर पांडे ने कोर्ट में एक याचिका दायर किया। जिसमें उन्होंने अदालत से ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण करने का मांग किया। लेकिन कोर्ट ने यह फैसला सुनाते हुए इस याचिका को खारिज कर दिया कि 15 अगस्त 1947 से पहले अस्तित्व में रहे किसी भी धार्मिक स्थल को दूसरे रूप में बदला नहीं जा सकता।

 

कानूनी प्रक्रिया के दौरान सन 1998 में कोर्ट ने मस्जिद का सर्वे करने का आदेश दे दिया। इस फैसले के खिलाफ मुस्लिम प्रबंधन के लोगों ने इलाहाबाद कोर्ट में चुनौती दे दी। जिसके बाद कोर्ट ने इस सर्वे को रद्द कर दिया। हिंदू समुदाय से जुड़े लोगों ने फिर से सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, जिसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जांच के आदेश दिए, वाराणसी कोर्ट में फिर से इस मामले की सुनवाई होने लगी।

 

क्योंकि कुछ हिंदू धर्म की महिलाओं ने, सन् 2021 को मस्जिद के परिसर में माता गौरी की पूजा अर्चना, सर्वे करने के लिए कोर्ट से अनुमति मांगी थी। फास्ट्रैक कोर्ट ने फिर से दोबारा मस्जिद परिसर का सर्वे करने का आदेश दिया। कोर्ट के आदेश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने सर्वे किया। एएसआई रिपोर्ट के अनुसार वास्तु शिल्प, अवशेषों, और खंभे पर बने आकृतियों के आधार पर बताया कि यहां पर मस्जिद से पहले हिंदू मंदिर होने के साक्ष्य मिले हैं।

 

 24 जनवरी 2024 को जिला न्यायालय वाराणसी कोर्ट ने सर्वेक्षण विभाग द्वारा जारी की गई रिपोर्ट को दोनों पक्षों को सौंपने का आदेश दिया है। बता दे सर्वे विभाग ने 91 दिन के सर्वे में 839 पेज की रिपोर्ट तैयार की है। जिसमें उन्होंने बताया है वर्तमान ढांचा 2 सितंबर 1669 के आसपास की हैं। मस्जिद की दीवारों घंटी की आकृतियां बनी है, और खभों पर छोटी-छोटी देवी देवताओं की आकृतियां भी बनी हुई है।

 

ज्ञानवापी क्यों है हिंदुओं के लिए महत्वपूर्ण

सनातन धर्म में ज्ञानवापी को एक महत्वपूर्ण स्थान माना जाता है, ग्रन्थों में दिए गए उल्लेख के अनुसार महादेव साक्षात जल के स्वरूप में यहां विराजमान है। पुराणों में दिए गए वर्णन के अनुसार महादेव ने वर्षों तक यहां आराधना की है। बताया जाता है महादेव ने अपने त्रिशूल से एक पवित्र कुआं बनाया था। जिसे पीकर लोगों को ज्ञान की प्राप्ति होती थी।

 

 

Conclusion –

ऊपर दिए गए साक्ष्य के अनुसार पता चलता है, ज्ञानवापी मस्जिद से पहले वहां विशालकाय मंदिर हुआ करता था, जिसे मुगल शासको ने तोड़कर वहां मस्जिद बनवाया। अगर इस मामले को लेकर कोर्ट में सुनवाई होती है, और हिंदू पक्ष साक्ष्य को सही ढंग से कोर्ट में पेश करता है, तों फैसला मंदिर के हक में होगा। क्योंकि रिपोर्ट के अनुसार, वहां के अवशेषों और आकृतियों का अध्ययन करने के बाद पता चलता है कि इस स्थान पर पहले एक हिंदू मंदिर था। हालांकि मुस्लिम पक्ष की तरफ से भी यह बात उजागर होता है कि वहां पिछले कई वर्षों से मस्जिद मौजूद है। खैर आज भी इस मामले पर कोर्ट में सुनवाई चल रही है, संभवत फैसला मंदिर के पक्ष में आने की संभावना है।

 

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