History Of the Gulf War hindi

 History Of the Gulf War आज के इस आर्टिकल में हम बात करने वाले हैं गल्फ युद्ध के बारे में यानी की “खाड़ी का युद्ध”।गल्फ युद्ध का पूरा इतिहास.

1990 में गल्फ युद्ध का आरंभ हुआ, जिसे खाड़ी युद्ध के नाम से भी जाना जाता है। यह युद्ध दो मुख्य देशों इराक और कुवैत के बीच आरंभ हुआ था।

गल्फ़ का युद्ध एक विशाल अंतरराष्ट्रीय समस्या बन गया और दुनिया को एक बड़े संकट का सामना करना पड़ा।

युद्ध की शुरुआत इराक द्वारा हुई, जब सद्दाम हुसैन के नेतृत्व में कुवैत पर आक्रमण किया गया। 

इसके पीछे कई कारण थे, जैसे कि वित्त समस्याएं और सीमा विवाद। 

इस आक्रमण के परिणामस्वरूप, कुवैत का अधिग्रहण हो गया और इराक ने विश्व को हिला दिया।

इस  आक्रमण के खिलाफ कई देशों ने विरोध किया और संयुक्त राष्ट्र ने सैन्य दबाव डालने का प्रयास किया। 

1991 में गल्फ युद्ध शुरू हुआ, जिसमें संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने, इराक के खिलाफ सैन्य कार्रवाई की।

 

चलिए अब हम गल्फ युद्ध के बारे में विस्तार से समझते हैं।

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History Of the Gulf War hindi

जैसा कि हमने आपको बताया है कि गल्फ युद्ध की शुरुआत 1991 में हुई थी। दरअसल इस युद्ध की शुरुआत तब से नहीं बल्कि कई सालों पहले ही हो चुकी थी। 

 

जब सन 1990 में गल्फ country में तनाव का माहौल बढ़ गया था।

 

 आख़िर कैसे गल्फ वार की उत्पत्ति हुई ?

 

गल्फ़ countries 1990 में एक ऐसे युद्ध में जल रही थी जिसका Impact कहीं ना कहीं आज भी देखने को मिलता है।

 

एक ऐसा युद्ध! जिसमें एक-दो या चार नहीं बल्कि करीब 39 countries को इस आग में झुलसना पड़ा।

 

पूरी दुनिया को यही लग रहा था कि इस युद्ध के पीछे सिर्फ़ oil और सीमा विवाद ही है लेकिन सच्चाई कुछ और ही है ।

 

सच्चाई असल मायने में गल्फ़ में वर्चस्व किसका होगा इस बात को लेकर ही तनाव बड़ा था।

 

गल्फ़ war, 21वीं सदी का पहला युद्ध था जिसमें उन सारे Hi-Tech weapons का प्रयोग किया गया था जो आज के समय मौजूद हैं।

 

एक ऐसा युद्ध हुआ जिसमें सारे International News Channel इस वार को broadcast करने में लगे हुए थे।

 

एक बार सोच के देखिए! की आप उस समय इस युद्ध को अपने घर में बैठ के देख रहे हो । किसी बेहतरीन video game से कम नहीं था यह युद्ध।

 

इसलिए ही इस युद्ध का दूसरा नाम Video Game War भी रखा गया।

 

जैसा कि video की शुरुआत में ही हमने आपको बताया की इस युद्ध के पीछे Oil और सीमा विवाद एक कारण था ही इसके साथ ही अपना दबदबा बनाने की होड़ भी थी।

 

आइए अब इसको थोड़ा सा समझने की कोशिश करते हैं।

 

जब अगस्त 1988 में कुवैत के साथ सीजफायर पर हस्ताक्षर किये गए, इसके वजह से इराक लगभग दिवालिया हो चुका था, यह अधिकतर सऊदी अरब और कुवैत का ऋणी था। इराक ने दोनों देशों पर ऋण माफ करने के लिए दबाव डाला ।

 

लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। इसके बाद कुवैत ने अपने ओपेक कोटा को बढ़ा दिया और तेल की कीमतों को कम कर दिया, इस प्रकार से इराक की अर्थव्यवस्था को एक और झटका लगा।

 

तेल की कीमतों के गिरने से इराक की अर्थव्यवस्था पर एक Economically बहुत बुरा प्रभाव पड़ा । इराकी सरकार ने इसे आर्थिक युद्ध बताया ।

 

सरकार ने दावा किया कि इसका कारण है इराक के रुमालिया तेल क्षेत्र में सीमा पार कुवैत के द्वारा की जाने वाली स्लांट ड्रिलिंग थी। जिसने स्थिति को और बदतर बना दिया।

 

oil विवाद के बाद सबसे महत्वपूर्ण तनाव था सीमा का।

 

इराक कुवैत विवाद में इराक का यह दावा भी शामिल था कि कुवैत ईराक का ही एक क्षेत्र है। 

 

1932 में स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, इराकी सरकार ने तुरंत घोषणा की कि कुवैत आधिकारिक रूप से इराक का ही क्षेत्र है, क्योंकि यह first world वार  के बाद कुवैत के ब्रिटिश निर्माण तक सदियों के लिए इराकी क्षेत्र में रहा है और इस प्रकार से यह कहा गया कि कुवैत एक ब्रिटिश साम्राज्यवादी आविष्कार है।

 

इराक ने दावा किया कि कुवैत बसारा प्रांत के तुर्क समाज का हिस्सा रह चुका है। 

इसके शासक वंश अल सबा परिवार ने 1899 में एक  protectorate agreement किया जिसमें उसके विदेशी मामलों की जिम्मेदारी ब्रिटेन को दी गयी 

 

और यह प्रयास किया गया कि इराक की समुद्र तक पहुंच को सीमित कर दिया जाये, ताकि कोई भी भावी इराकी सरकार फारसी खाड़ी के ब्रिटेन के प्रभुत्व को खतरा पहुंचाने की स्थिति में ना हो। 

 

इराक ने सीमा को मानने से इनकार कर दिया।

 

जुलाई के प्रारंभ में, इराक ने कुवैत के व्यवहार के बारे में शिकायत की, जैसे उनके कोटा को नहीं मानना और सैन्य कार्रवाई की खुली धमकी देना । 

 

23 तारीख को CIA ने रिपोर्ट दी!  कि ईराक ने 30000 सैन्य दलों को इराक-कुवैत सीमा पर भेजा है और फारस की खाड़ी में अमेरिकी नौसैनिक बेड़े को अलर्ट पर रखा गया है। 

 

25 तारीख को, सद्दाम हुसैन बगदाद में एक अमेरिकी राजदूत, अप्रैल ग्लासपी  से मिले।

 

इस बैठक के एक इराकी agreement के अनुसार, ग्लास्पी ने इराकी प्रतिनिधिमंडल को बताया, “हम अरब-संघर्ष पर कोई राय नहीं देंगे” ।

31 तारीख को, जेद्दा में इराक और कुवैत के बीच वार्ता हुई जो हिंसक रूप से असफल रही।

 

2 अगस्त 1990 को कुवैत की राजधानी, कुवैत नगर पर बमबारी करके आक्रमण शुरू कर दिया गया। हेलीकॉप्टर के द्वारा तैनात कमांडो ने हमले किये ।

 

फारस की खाड़ी के युद्ध की शुरुआत एक बहुत ही बड़े पैमाने,, हवाई बमबारी के साथ हुई थी। गठबंधन ने  के ऊपर से उड़ान भरते हुए, 88500 टन के बम गिराए । 

नौकाओं के द्वारा शहर पर आक्रमण किया गया, जबकि अन्य समूहों ने हवाई अड्डों और दो सैन्य हवाई अड्डों पर कब्जा कर लिया।

 

इराकी सरकार ने इस बात को छिपाकर नहीं रखा कि यदि इराक पर आक्रमण हुआ तो यह इजराइल पर आक्रमण करेगी। 

 

युद्ध शुरू होने से पहले, इराक के अंग्रेजी बोलने वाले विदेश मंत्री और उप प्रधान मंत्री तारिक अजीज  से एक रिपोर्टर के द्वारा पूछा गया कि जिनेवा, स्विट्जरलैंड में विफल हुए संयुक्त राज्य अमेरिका-इराक शांति प्रस्ताव का परिणाम क्या हुआ।

 

reporter ने पूछा कि “ श्री विदेश मंत्री यदि युद्ध शुरू होता है तो आप इजरायल पर हमला करेंगे”

 

इस बात पर उनकी प्रतिक्रिया थी — “हां, बिल्कुल, हां”

 

पहले हमले के पांच घंटे के बाद, इराक के एक राष्ट्रीय रेडियो प्रसारण में सद्दाम हुसैन की आवाज को यह कहते हुए पहचाना गया कि “महान द्वंद्वयुद्ध, सभी लड़ाइयों की मां शुरू हो गयी है।

 

जैसे ही यह महान तसलीम शुरू होगा । विजय की सुबह करीब आ जाएगी” । 

 

इराक ने अगले ही दिन इजराइल में आठ इराक़ी  स्कड मिसाइलें छोड़ कर जवाब दिया। 

 

इजराइल पर वार करने वाली ये मिसाइलें लगातार छह सप्ताह तक हमले करती रहीं।

 

इराकियों को उम्मीद थी कि इजराइल पर हमला करके वे युद्ध में शामिल हो जायेंगे । 

यह उम्मीद की गयी कि कई अरब राष्ट्र गठबंधन से बाहर चले जायेंगे, क्योंकि वे इजराइल की तरफ से लड़ना नहीं चाहेंगे । 

 

इजराइल संयुक्त राज्य अमेरिका के अनुरोध पर युद्ध में शामिल नहीं हुआ और सभी अरब राष्ट्र गठबंधन में बने रहे।

 

 स्कड मिसाइलों की क्षमता को  हमले में महसूस किया गया, जिसने 28 संयुक्त राज्य अमेरिकी सैनिकों को मार डाला।

 

इराक ने इस युद्ध में लगभग 25000-50000 अपने सैनिक खोए। record के अनुसार इराक ने अपने एक लाख से ज्यादा नागरिकों को खोया था।

 

वहीं दूसरी तरफ़ कुवैत ने अपने 4000 सैनिक और हजारों नागरिकों को खोया ।

 

दोनों तरफ से ही economically परेशानी देखने को मिली।

 

सऊदी अरब और इजरायल पर भी इसका असर पड़ा था लेकिन समय के साथ ठीक हो गया । 

 

युद्ध शुरू हो चुका था तो ऐसे में संयुक्त राष्ट्र चुप कैसे बैठ सकता था।

14 जनवरी 1991 को, फ्रांस ने प्रस्ताव रखा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने इराक के साथ एक समझौते के साथ “बड़े पैमाने पर और तीव्र निकासी” की योजना बनायी ।

 

इस समझौते में कहा गया कि परिषद के सदस्य क्षेत्र की अन्य समस्याओं को हल करने में “सक्रिय योगदान” देंगे” । 

विशेष रूप में, अरब-इजरायल संघर्ष के लिए और खासकर एक उपयुक्त क्षण पर एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन में आयोजन के द्वारा फिलिस्तीन समस्या के लिए । 

ताकि दुनिया के क्षेत्र के विकास और सुरक्षा को सुनिश्चित किया जा सके। 

 

फ्रांसीसी प्रस्ताव को बेल्जियम और जर्मनी के द्वारा समर्थन दिया गया ।

 स्पेन, इटली, अल्जीरिया, मोरक्को, ट्यूनीशिया और कई गैर गठबंधन राष्ट्रों ने भी इसे समर्थन दिया। 

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संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन ने इसे अस्वीकार कर दिया। 

 

अमेरिकी संयुक्त राष्ट्र के राजदूत थॉमस पिकरिंग ने कहा कि फ्रांस का प्रस्ताव अस्वीकार्य था, क्योंकि यह इराकी आक्रमण पर पिछले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों से परे चला गया था।

 

गल्फ युद्ध अत्यंत आक्रामक और जीवन को खतरे में डालने वाला युद्ध था।

 

इसके परिणामस्वरूप, इराक की हानि हुई और युद्ध के बाद सद्दाम हुसेन का नायब शक्ति में आने का कार्य सम्भव हुआ। 

 

अगर इस युद्ध से हुए Environmental Impact की बात की जाए तो करीब 3.5 million ton ऑल पूरे कुवैत के रेगिस्तान में फैल गया था ।

 

वहीं लगभग 8 lakh ton oil परसियन गल्फ पर फैल गया था।

 

कुवैत में जल रहे oil से हजारों km तक के area का temperature अचानक से बढ़ गया था जिसका actual impact कुछ समय बाद तुर्की में हुआ ।

 

जहाँ मार्च 1991 में  black acidic rain हुई जिससे इस देश के agreeculture में भारी नुक़सान पहुँचा ।

 

कुवैत के 800 से ज़्यादा oil wells महीनों तक जलते रहे जिससे nitrogen oxide, hydrogen carbonate और hydrogen sulphide gas काफी मात्रा में produce हुई।

 

यह युद्ध गल्फ़ क्षेत्र में महत्वपूर्ण बदलावों का कारण बना, और इसके परिणामस्वरूप सुरक्षा और राजनीतिक परिस्थितियों में भी परिवर्तन आया।

 

इस तरह, गल्फ युद्ध ने 1990-1991 में दुनिया को एक बड़े संकट का सामना करना पड़ा।

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