joseph stalin biography in hindi

joseph stalin biography in हिंदी – मौत सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान है, नो मैन नो प्रॉब्लम।जोसेफ स्टालिन के नाम का मतलब था स्टील मैन। यानी लौह पुरुष। इसलिए स्टालिन को रूस का स्टील मैन भी कहा जाता था। 

ये थ्योरी थी जोसेफ़ स्टोलिन नाम के एक ऐसे कमजोर से बच्चे की, जो बड़ा होकर बना एक बेरहम तानाशाह।

 

आज हम आपको बताने जा रहे हैं जोसेफ स्टालिन के बारे में। एक ऐसा व्यक्ति जिसने लगभग दो करोड़ लोगों की हत्या करवा दी फिर भी वो लाखों लोगों का आइडल बना रहा, एक ऐसा व्यक्ति जिसने अपने परिवार को भी नहीं बख्शा।

स्टालिन वह शख्सियत है, जिसको हम हीरो और विलन,    दोनों ही कह सकते हैं। क्योंकि 2 करोड लोगों की हत्या करवाने के बाद भी,   जब स्टालिन की मौत हुई तो उसके जनाजे में लाखों लोग इकट्ठा हुए और नम आंखों से उसे अंतिम विदाई दी।

तो चलिए,  जानते है जोसेफ स्टालिन के बचपन से लेकर, मौत का तांडव मचा देने वाले बेरहम तानाशाह बनने तक, दरिंदगी भरे सफर की दास्तां.

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joseph stalin biography in hindi

जोसेफ स्टालिन का जन्म 18 दिसंबर 1878 को,  जॉर्जिया के एक छोटे से शहर गोरी में हुआ था। हालांकि बाद में स्टालिन ने अपना जन्मदिन 21 दिसंबर को कर लिया था।

 

जॉर्जिया उस समय रूस के जार एंपायर का हिस्सा हुआ करता था। 

बचपन में स्टालिन का नाम जोसेफ विसरियोनोवोच जुगाश्विली था। उनके पिता पेशे से एक मोची थे और शराबी भी थे।

जो अपनी सारी कमाई दारू पीने में उड़ा दिया करते थे।

 

ऐसा कहा जाता है कि, स्टालिन के पिता 1 दिन में लगभग 10 बोतलें शराब पिया करते थे। जिससे उनके परिवार में आर्थिक तंगी का माहौल बन गया था।

 

इसके साथ ही बचपन में स्टालिन के पिता शराब के नशे में स्टालिन को बुरी तरह पीटा करते थे। एक बार तो उनके पिता ने स्टालिन को इतना पीटा, कि उनके एक हाथ में फ्रैक्चर तक हो गया।

इतना ही नहीं स्टालिन के पिता उनकी मां को भी बुरी तरह से पीटा करते थे। पिता से जहां कभी स्टालिन को प्यार मिला ही नहीं, तो वही स्टालिन की मां स्टालिन से बहुत प्यार करती थी।

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स्टालिन की मां दूसरों के घरों में कपड़े धोने का काम करती थी। और इसी से वह दो वक्त की रोटी का इंतजाम करती थी। स्टालिन उनकी एकमात्र संतान था, क्योंकि स्टालिन के बाकी भाई बहन प्रसव के दौरान ही मर गए थे। 

दोस्तों जिस स्टालिन ने हिटलर जैसे तानाशाह को मात दी और इतने सारे लोगों की हत्या का कारण बना उसी स्टालिन को बचपन में दूसरे बच्चे तंग किया करते थे।

एक बार 7 वर्ष की उम्र में स्टालिन को, चेचक की बीमारी हो गई थी। जिसकी वजह से उनके चेहरे पर दाग पड़ गए थे। उसको लेकर भी बच्चे उन्हें खूब चिढ़ाया करते थे।

ताज्जुब की बात है,जो स्टालिन अपनी एक उम्र पर इतना बड़ा तानाशाह था, वह बचपन में उतना ही कमजोर बच्चा था और स्टालिन की इसी कमजोरी का फायदा उठा कर,  दूसरे बच्चे उन्हें तंग किया करते थे। 

आपको बता दें कि स्टालिन की मां एक धार्मिक विचारों वाली महिला थी, और वह स्टालिन को पढ़ा लिखा कर एक पादरी बनाना चाहती थी।

इसलिए उसने अपनी धोबी की कमाई से बचे कुचे पैसों से स्टालिन का एडमिशन, गोरी चर्च स्कूल में करवा दिया।

स्कूल में भी स्टालिन की कमजोरी का फायदा दूसरे बच्चे उठाया करते थे और उन्हें बहुत तंग किया करते थे। इतना ही नहीं यहां भी उनकी गलतियों के लिए उन्हें बुरी तरह पीटा जाता था।

 इस सब के बावजूद भी स्टालिन पढ़ाई में बहुत होशियार था, और इसी होशियारी की वजह से उनको 1894 में जॉर्जिया के ऑर्थोडॉक्स चर्च में,पादरी की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप मिल गई।

लेकिन कुछ समय बाद ही स्टालिन को पादरी की पढ़ाई में कोई दिलचस्पी नहीं रही और वह चोरी-चोरी कार्ल मार्क्स की किताबें पढ़ने लगा। 

कार्ल मार्क्स की किताबें पढ़ने का स्टालिन पर गहरा असर पड़ा और वह रूसी बादशाह के खिलाफ चल रहे आंदोलनों में दिलचस्पी लेने लगा. कुछ समय बाद उसने अपने आप को नास्तिक भी घोषित कर दिया।

उन्होंने सेमिनरी में परीक्षाएं भी नहीं दी और 1899 में स्कूल तक छोड़ दिया।……बस…यहीं से शुरू हुआ स्टालिन के तानाशाह बनने का सफर।

स्कूल छोड़ने वाला यह स्टालिन कोई बुद्धू नहीं था। वह स्कूल के दिनों में कई विषयों में एक्सपर्ट हुआ करता था और अच्छे ग्रेड्स भी लेकर आता था। इतना ही नहीं, स्टालिन डेली 500 पेजेस पड़ता था, और आपको यकीन नहीं होगा की उसकी पर्सनल लाइब्रेरी में दो हजार के लगभग किताबे थी।

 

कम्युनिज्म की ओर आकर्षित होने वाला स्टालिन,  स्कूल छोड़ने के बाद सरकार विरोधी आंदोलनों में सक्रिय हो गया।

धीरे-धीरे उसने मजदूरों के प्रदर्शन और हड़ताल में हिस्सा लेना शुरू कर दिया और 1901 में स्टालिन ने सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी को ज्वाइन कर लिया।

इस पार्टी का मकसद था, रशियन रोमन ऑफ डायनेस्टी को उखाड़ फेंक कर, कम्युनिस्ट गवर्नमेंट को स्थापित करना। 

इस दौरान स्टालिन को कई बार जेल भी जाना पड़ा। ऐसा कहा जाता है कि स्टालिन अपने समय में लगभग 7 बार जेल जा चुका था और उनमें से दो बार जेल से भागने में भी सफल रहा था।

ऐसा भी माना जाता है कि, स्टालिन को साइबेरिया की जेल में भी भेजा गया था। 

 

साइबेरिया की जेल के बारे में कहा जाता है कि वहां इतनी सर्दी होती है, की लोग खड़े खड़े जम जाए। इतना ही नहीं,  इन जेलों में लोगों को बेमतलब ही, जेलर कभी कभी मार भी दिया करते थे।

इसी डर के चलते स्टालिन के कई साथी तो रात रात भर सो नहीं पाते थे, लेकिन स्टालिन के मन में डर नाम की चीज शुरू से ही नहीं थी और वह इस सबके बाद भी मज़े की नींद सोता था। और इस तरह सन 1905 में फिनलैंड में स्टालिन की मुलाकात पहली बार लेनिन से हुई।

 स्टालिन, लेनिन को अपना आइडल मानते थे, और उनकी पार्टी को सपोर्ट करने के लिए स्टालिन ने,  कई तरह के क्राइम भी करने शुरू कर दिए थे। 

दरअसल हुआ यूं था,  कि 1905 के लगभग तक     सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के दो टुकड़े हो गए थे जिनमें से एक था बोल्जेविक्स, जिन्होंने हिंसा के जरिए क्रांति का रुख अपनाया और दूसरे थे मैनजेविक जो शांति से क्रांति चाहते थे।

 

इसलिए बोल्जेविक्स की साइड वो लोग थे, जो हिंसा से क्रांति चाहते थे, तो स्टालिन ने भी लेनिन की पार्टी को ज्वाइन किया और उसकी पार्टी की फंडिंग के लिए कई तरह के क्राइम जैसे किडनैपिंग, मर्डर, चोरी और डकैती करने लगे।

इसी फंडिंग के लिए स्टालिन ने 1907 में अपने गैंग के साथ मिलकर एक बैंक को लूटा था और यहां करीब 40 लोगों को लूट के दौरान स्टालिन ने गोलियां मार दी थी। इस लूट में स्टालिन को 30 लाख 50 हज़ार रूबल प्राप्त हुए जिन्हें अगर हम आज देखें तो ये 28 करोड़ भारतीय रुपए के बराबर है।

 

आखिरकार 1917 में रोमन ऑफ डायनेस्टी को कम्युनिस्ट उखाड़ फेंकते हैं, और लेनिन सोवियत रशिया का हेड बन जाता है।

धीरे-धीरे स्टालिन का रुतवा बढ़ता रहा और 1922 में उसे कम्युनिस्ट पार्टी की सेंट्रल कमेटी का, सेक्रेटरी जनरल बना दिया गया।

 

 कम्युनिस्ट पार्टी का सेक्रेटरी जनरल बनते ही स्टालिन को काफी ताकत मिल गई थी और उसने सरकारी नौकरियों में अपने जानने वालों की भर्ती की और अपनी पॉलिटिकल बुनियाद को मजबूत करता चला गया। 

दोस्तों 1924 में लेनिन की मौत हो जाती है और यहीं से शुरू होता है,  मौत का तांडव। लेनिन की मौत के बाद स्टालिन ने साम दाम दंड भेद अपनाकर अपने सभी कंपटेटर्स को चारों खाने चित कर दिया। 

 

लेनिन का असली उत्तराधिकारी लियोन ट्राउट्सी था। जिसे स्टालिन ने 1929 में सोवियत संघ से बाहर फेंक दिया.

क्सिको में उसकी हत्या करवा दी जिसके बाद स्टालीन ने कम्युनिस्ट पार्टी पर पूरी तरह से अपना कब्जा जमा लिया। इस तरह स्टालिन बन बैठा सोवियत संघ का तानाशाह।

 

अपने प्रचार प्रसार के लिए, स्टालिन ने मूवी थिएटर से लेकर बाजारों तक में अपने पोस्टर लगवा दिए,     और सत्ता में आने के बाद स्टालिन ने industrilization की तरफ काम करना शुरू कर दिया, इसके बाद धीरे-धीरे स्टालिन ने किसानों से जबरन उनकी जमीन लेना भी शुरू कर दिया।

लेकिन लाखों किसान ऐसे थे, जिन्होंने स्टालिन का फरमान नहीं माना और अपनी जमीन देने से इंकार कर दिया। फिर स्टालिन के हुक्म पर इन किसानों को या तो गोली मारकर मौत की नींद सुला दिया गया या फिर उन्हें देश से बाहर निकाल दिया गया।

जबरन किसानों की जमीन छीनने की वजह से पूरे सोवियत संघ में अकाल जैसी स्थिति हो गई थी अब वहा के लोगों में स्टालिन का खौफ बन गया था। वहीं कुछ लोगों की तो इस अकाल के चलते ही मौत हो गई थी।

 

आपको बता दें, कि अपने कंपटेटर्स को कुचलने के लिए स्टालिन ने एक सीक्रेट पुलिस बनाई थी। जिसकी ताकत उसने कई गुना तक बढ़ा दी थी और  एक दूसरे की जासूसी करने के लिए उकसाकर लाखों लोगों को या तो मरवा दिया जाता था या फिर उनसे जबरन मजदूरी करवाई जाती थी।

इतना ही नहीं,  इंडस्ट्रीज और प्रोडक्शन को पूरा करने के लिए किसानों को एक टारगेट दिया जाता था, जैसे तुम्हें इस महीने 30 किलो चावल उगाने ही उगाने हैं। और जो किसान इस लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाता था उसे गोली मार दी जाती थी। 

स्टालिन ने बड़े किसान,जिन्हें उस समय खुल्लर कहा जाता था। उन्हें एक आदेश दिया, कि वे सब अपनी जमीनों को जोड़कर बड़े एग्रीकल्चरल फार्म बना दें। जिससे कि ज्यादा फसल उगा सके।

 

लेकिन इस फसल का 90% भाग रूसी हुकूमत के पास ही जाता था। जबकि दिन भर मेहनत करने वाले किसानों के पास सिर्फ 10% हिस्सा ही जाता था।

इस जालिमाना फरमान के चलते किसान बेहद परेशान हो गए और उन्होंने रूसी हुकूमत के खिलाफ प्रदर्शन करने शुरू कर दिए, वह अपनी फसल हुकूमत को देने की जगह जलाने लगे। इस पर स्टालिन आग बबूला हो गया और उसने तानाशाह रवैया दिखाते हुए अपने ही देश के किसानों के खिलाफ एलान-ए-जंग कर दिया। 

 

सिर्फ स्टालिन के एक आदेश पर रूसी सैनिकों ने अपने ही देश के 30 लाख सैनिकों पर धड़ाधड़ गोलियां बरसा दी, जिससे उन सभी की मौत हो गई।

 

इतना ही नहीं, स्टालिन ने कुछ किसानों को साइबेरिया की जेलों में भेज दिया, जहां की ठंड बर्दाश्त के बाहर होती थी और वहां खाने के लिए भी पर्याप्त खाना नहीं होता था, जिसके कारण कई बार तो ऐसा हुआ,  कि लोगों ने एक दूसरे को ही मार कर खाना शुरू कर दिया था। इस ठंड और भुखमरी के कारण, कई किसानों की मौत हो गई। कुछ खुशनसीब ही किसान ऐसे थे जो वहां से जिंदा बचकर आए। 

 

इतनी हत्या करने के बाद भी स्टालिन अपने आप को बढ़ा चढ़ाकर लोगों के सामने पेश करता था। कई शहरों का नाम उसके सम्मान में रखा गया। इतना ही नहीं इतिहास की किताबें दोबारा लिखी गई, जिनमें स्टालिन को प्रायोरिटी दी गई।

स्टालिन का नाम,सोवियत संघ के राष्ट्रीय गीत का हिस्सा तक बन गया।

सिर्फ ही नहीं, उन दिनों मीडिया को भी स्टालिन ने अपनी मुट्ठी में कर रखा था। अगर स्टालिन के खिलाफ कोई भी न्यूज़ जाती तो स्टालिन उस न्यूज़ छापने वाले को ही मौत की नींद सुला दिया करता था।

 

स्टालिन को अपनी सत्ता जाने का डर शुरू से ही था। इसलिए उसने अपने सभी विरोधियों की हत्या करने का मन बना लिया था और इसका रिजल्ट ये मिला कि 103 में से 83 जनरल्स को मौत के घाट उतार दिया गया। वही कम्युनिस्ट पार्टी के 149 में से 91 मेंबर्स की हत्या कर दी गई और 30 लाख में से 10 लाख कम्युनिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं को भी मौत की नींद सुला दिया गया।

सिर्फ यही नहीं जो भी स्टालिन का विरोध करता फिर चाहे वे उसके फैमिली मेंबर्स ही क्यों ना हो उन्हें भी स्टालिन या तो मरवा दिया करता या साइबेरिया भेज दिया करता था।  

 

इन सब के बावजूद भी स्टालिन की जो सबसे बड़ी उपलब्धि रही,  वो थी हिटलर को हराना। दरअसल 1939 में दूसरा विश्व युद्ध शुरू होने से पहले, स्टालिन और हिटलर के बीच एक समझौता हुआ था।

इस समझौते के अनुसार जर्मनी और सोवियत संघ एक दूसरे पर 10 साल तक हमला नहीं कर सकते थे और उसके बाद उन्होंने पोलैंड और रोमानिया के साथ-साथ,  एस्तोनिया, लातविया और लिथोनिया जैसे बाल्टिक राज्यों को रूस में मिला लिया।

उन्होंने फिनलैंड पर भी हमला कर दिया और जून 1941 में जर्मनी ने नाज़ी सोवियत समझौता तोड़ दिया और रूस पर हमला कर दिया।

जब जर्मनी फौज मास्को पहुंचीं तो स्टालिन वहीं था। स्टालिन ने दुश्मन पर जोरदार हमला करने के आदेश दिए। 

 

अब यहां पर जर्मन फौज को ठंड की आदत तो थी , इसलिए उन्हें करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा। हिटलर की आधी से ज्यादा फौज ठंड से बीमार होने लगी, वहीं स्टालिन ने अपने साइबेरिया के दस्तों को मैदान ए जंग में उतार दिया था। 

 

इतना ही नहीं, स्टालिन ने अपने बेटे को भी इस जंग में कुर्बान कर दिया था। और अगस्त 1942 से फरवरी 1943 तक चले इस युद्ध में सोवियत संघ का पलड़ा भारी हो गया और हिटलर की सेना ने दम तोड़ दिया, इसके बाद हिटलर को जब ये पता चला तो उसने आत्महत्या कर ली।

 

एक तरह जहाँ इस युद्ध के बाद स्टालिन रशियंस के लिए हीरो बन गया तो वहीं दूसरी तरफ स्टालिन की इंडस्ट्रेलिस्ट पॉलिसी के कारण, रशिया इकोनॉमी में डेवलप करता है और दुसरा परमाणु संपन्न देश बन जाता है।

 

इतना ही नहीं स्टालिन को 1945 और 1948 में शांति के लिए नोबेल प्राइज भी दिया जाता है।

 

और आखिरकार हर इंसान की तरह स्टालिन का भी अंत आता है। अपने आखिरी के दिनों में स्टालिन को दिमाग से रिलेटेड एक बीमारी हो जाती है जिसके चलते 5 मार्च 1953 को स्टालिन की स्ट्रोक के चलते मौत हो जाती है।

 

उनकी मौत के बाद उनके जनाजे में लाखों लोगों की भीड़ उमड़ी जिन्होंने रोते हुए स्टालिन को विदाई दी और आज भी लाखों रशियन लोग स्टालिन को अपना आइडल मानते हैं। 

 

तो दोस्तों ये थी तानाशाह स्टालिन की कहानी। अब आप स्टालिन के बारे में क्या कहना चाहेंगे?

क्या वो हीरो था या विलेन ? हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताइएगा और अगर आपको आज की वीडियो अच्छी लगी हो तो इसे लाइक, शेयर जरूर कर कीजिएगा। 

तो मिलते हैं अगली वीडियो में ढेर सारी रोचक जानकारी  के साथ तब तक के लिए जय हिन्द.

 

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