Table of Contents
tulsi poojan | भूल कर भी मत चढ़ाना गणेश जी को तुलसी
tulsi poojan –गणेश जी की पूजा मे ये विशेस ध्यान रखे की गणेश जी की पूजा मे तुलसी न चढ़ई
जाए। क्यो कि एक पौराणिक कथा के अनुसार गणेश जी और तुलसी जी ने एक दूसरे को श्राप दे
दिया था, तभी से गणेश भगवान कि पूजा मे तुलसी का प्रयोग नही किया जाता।
प्राचीन समय कि बात है। श्री गणेश जी गंगा के तट पर भगवान विषणु के घोर ध्यान मे लीन थी। गले पर सुंदर माला और शरीर पर चन्दन लिपटा हुआ था और वह रत्न जड़ित सिंहासन पर
विराजित थी।
tulsi poojan
उनके मुख पर सूर्य सा तेज़ चमक रहा था वह बहुत ही आकर्षण पैदा कर रहे थी। इसतेज को धर्मार्त्म्क कि कन्या तुलसी ने देखा और वह गणेश जी पर मोहित हो गई।
तुलसी स्वय भी भगवान विषणु कि परम भक्त थी। तुलसी जी को लगा कि यह मोहित करने वालेदर्शन भगवान इछ से ही हुए है। तुलसी जी ने गणेश जी से विवाह करने कि इच्छा प्रकट की। किन्तु गणेश जी ने कहा कि वह ब्रांहचरया कि जीवन व्यातीत कर रहे है। इसलिए वह विवाह के बारे मे अभी बिलकुल नहीं सोच सकते। विवाह करने से उनके जीवन मे ध्यान और ताप कि कमी आ सकती है।
इस तरहा सीधे सीधे गणेश जी ने तुलसी जी के विवाह को ठुकरा दिया। तुलसी जी सहन नही कर सकी और क्रोध मे आकर उन्होने गणेश जी को श्राप दे दिया कि “तुम्हारी शादी तो अवशय्या होगी और वो भी तुम्हारी इछ के बिना” अब ऐसे वचन सुन कर गणेश जी भी चुप बैठने वाले नहीं थी उन्होने भी तुलसी जी को श्राप दे दिया कि “तुम्हारी शादी एक दैत्य से होगी”
tulsi poojan
यह सुन कर तुलसी को अतत्यन्त दुख और पश्चाताप हुआ। तुलसी ने गणेश जी से क्षमा मांग ली।अब गणेश जी भी दया के सागर थे उन्होने बोला अब श्राप तो वापिस लिया नहीं जा सकता किंतु मे एक वरदान देता हु और इस तरहा तुलसी को वरदान देते हुए गणेश जी ने कहा कि एक दैत्य से विवाह होने के बाद भी तुम विष्णु कि अति प्रिय रहोगी और एक पवित्र पौधे के नाम से पूजी जाओगी।
tulsi poojan
विष्णु भगवान कि कोई भी पूजा तुम्हारे पत्ते के बिना पूरी नहीं मनी जाएगी चरणामृत मे तुम हमेशा साथ रहोगी। मरने वाला यदि तुम्हारे पत्ते मुहं मे डाल लेगा तो उसे वैकुंठ धाम प्राप्त हो जाएगा।
पौराणिक कथा
तुलसी का इतिहास पौराणिक कथाओ से जुड़ा है, पौराणिक काल में एक लड़की थी जिसका नाम
वृंदा था। उसका जन्म राक्षस कुल में हुआ था। वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु जी की परम भक्त थी। बड़े ही प्रेम से भगवान की पूजा किया करती थी।
जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा बड़ी ही पतिव्रता वादी स्त्री थी, सदा अपने पति की सेवा किया करती थी।
tulsi poojan
एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा -स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं आप जब तक युद्ध में रहेगें में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते मैं अपना संकल्प नही छोडूगीं।
जलंधर तो युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई। उसकी इस सच्ची निष्ठा वाले पूजा अनुष्ठान और संकल्प की वजह से जलंधर इतना ताकतवर हो गया था
या फिर ऐसा कह लो की वृन्दा की पूजा जलंधर की रक्षाकवच बन कर रक्षा कर रही थी जिस वजह से देवता उस से जीत नही पा रहे थे, सारे देवता जब हारने लगे तो सब देवता भगवान विष्णु जी के पास गए।
tulsi poojan
सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि-वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पहुंच गए जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा, वे तुरंत पूजा में से उठ गई और उनके चरण छू लिए इस तरहा से पूजा से हटने की वजह से
वृंदा का संकल्प टूट गया,
और उधर युद्ध में देवताओं ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया। उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पड़ा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
उन्होंने पूछा– आप कौन हैं जिसका स्पर्श मैंने किया,तब भगवान अपने रूप में आ गए पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई।
वृंदा क्रोधित होकर भगवान को श्राप दे दिया की “आप पत्थर के हो जाओ”,भगवान तुंरत पत्थर के हो गए।
सभी देवता हाहाकार करने लगे। लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्राथना करने लगीं तब जा कर वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गई।
उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा- आज से इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और मैं बिना तुलसी जी के प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा।
तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।
महाभारत काल की अद्भुत ज्ञान से भरी एक सच्ची ऐतिहासिक घटना – 🙏 इस video को 👉🎧 लगाकर एक बार जरूर देखे.
>
तो दोस्तों ज्ञान से भरी यह video कैसी लगी? ऐसी ही और भी तमाम videos देखने के लिए नीचे दिये गए लाल बटन पर clik करो (दबाओ) 👉
- मोक्षप्राप्ति का सही मार्ग
- ज्ञान स भरी धार्मिक कहानियो का अद्भुत संग्रह
- ज्ञान से भरी गुरु नानक जी की अद्भुत कहानिया
- पौराणिक कथा
- New moral story उद्धव के सवाल
- Religious story dharmik kkahani
- धार्मिक ज्ञान – तर्पण का सच्च
- hindi religious stories
- महात्मा बुद्ध और भिखारी की कहानी
- कर्मफल पर आधारित 3 अद्भुत कहानियाँ
- कर्मो का फल – ज्ञान से भरी धार्मिक कहानियाँ
- दान का फल – ज्ञान से भरी religious stories
- भगवान विष्णु के पांच छल
- religious story हनुमानvs बाली
- अध्यात्म ज्ञान क्या होता है
- Hanuman chalisa meaning in hindi