tulsi ke patte — शास्त्रों के अनुसार तुलसी की पत्तियों को कुछ खास दिनों में नहीं तोड़ना चाहिए. एकादशी,रविवार, सूर्य ग्रहण और चन्द्र ग्रहण के वक्त तुलसी की पत्तियों को नहीं तोड़ना चाहिए.
व्यर्थ में तुलसी की पत्ती तोड़ने से दोष लगता है. शाम के वक्त तुलसी के पास दीया जलाने से लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहती है.
घर के आँगन में तुलसी का पौधा है तो आपके घर के सारे वास्तु दोष मिट जायेंगे. घर में हमेशा धन लाभ के शुभ संकेत बने रहेंगे.
तुलसी का पौधा परिवार को बुरी नजर से बचाता है. तुलसी का पौधा नकारात्मक उर्जा का भी नाश करता है.
पौधा सूख गया है तो उसे किसी पवित्र नदी, तालाब या किसी कुँए में प्रवाहित कर दें. सुखा पौधा हटाने के बाद तुरंत नया तुलसी का पौधा लगाएं.
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वास्तुशास्त्र के अनुसार तुलसी का महत्व
वास्तु के अनुसार तुलसी को ईशान कोण यानि पूरब और उत्तर के कोण में लगाना उत्तम माना गया है। इसके अलावे पूरब और उत्तर की दिशा में भी तुलसी लगा सकते हैं।
वास्तु शास्त्र के अनुसार घर में तुलसी का पौधा दक्षिण दिशा को छोड़कर किसी भी दिशा में लगा सकते हैं। लेकिन दक्षिण दिशा में तुलसी का पौधा लगाना बहुत नुकसान देने वाला माना गया है।
साथ ही यह भी ध्यान रखने की जरूरत है कि तुलसी के आसपास कोई भी अन्य पौधा नहीं रहे।
वास्तु के अनुसार तुलसी के पौधे के आस-पास अन्य पौधों का होना अशुभ माना गया है। ऐसा माना जाता है कि तुलसी के आसपास घास या अन्य पौधा घर में दरिद्रता की स्थिति पैदा करता है।
भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय हैं और केवल तुलसी दल अर्पित करके श्रीहरि को प्रसन्न किया जा सकता है शास्त्रों में कहा गया है कि तुलसी जी की बात भगवान विष्णु कभी नहीं टालते हैं. इसलिए अगर तुलसी माता प्रसन्न हो जाएं तो सब तकलीफें दूर हो जाती हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं.
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तुलसी का पौधा हमेशा से आस्था का केंद्र रहा है. तीज-त्यौहार हो या पूजा-पाठ हर काम में इस पवित्र पौधे की पत्तियों को इस्तेमाल किया जाता है. विशेषकर कार्तिक महीने में तुलसी का महत्व और भी बढ़ जाता है.
एक साल में 15 पूर्णिमाएं आती हैं…अधिकमास या मलमास में ये संख्या 16 हो जाती है लेकिन इन सभी में कार्तिक की पूर्णिमा सबसे उत्तम संयोग लेकर आती है.
पूजा में तुलसी चढ़ाने का फल 10,000 गोदान के बराबर माना गया है
तुलसी का पौधा हमेशा से आस्था का केंद्र रहा है. तीज-त्यौहार हो या पूजा-पाठ हर काम में इस पवित्र पौधे की पत्तियों को इस्तेमाल किया जाता है. विशेषकर कार्तिक महीने में तुलसी का महत्व और भी बढ़ जाता है.
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कार्तिक माह में भगवान श्रीहरि की पूजा में तुलसी चढ़ाने का फल 10,000 गोदान के बराबर माना गया है.
तुलसी नामाष्टक का पाठ करने और सुनने से लाभ दोगुना हो जाता है. जिन दंपतियों को संतान का सुख ना मिला हो, उन्हें भी तुलसी पूजा करनी चाहिए. वैसे तो पूरे कार्तिक महीने में ही तुलसी के सामने दीपक जलाना चाहिए लेकिन अगर आपने किसी कारणवश दीपक नहीं जलाया है तो कार्तिक पूर्णिमा के दिन पूरे 31 दीपक जलाकर अपने घर और गृहस्थी के लिए सौभाग्य की कामना अवश्य करें.
पौराणिक कथा
तुलसी का इतिहास पौराणिक कथाओ से जुड़ा है, पौराणिक काल में एक लड़की थी जिसका नाम वृंदा था।
उसका जन्म राक्षस कुल में हुआ था। वृंदा बचपन से ही भगवान विष्णु जी की परम भक्त थी। बड़े ही प्रेम से भगवान की पूजा किया करती थी।
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जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया,जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था। वृंदा बड़ी ही पतिव्रता वादी स्त्री थी, सदा अपने पति की सेवा किया करती थी।
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एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा -स्वामी आप युद्ध पर जा रहे हैं आप जब तक युद्ध में रहेगें में पूजा में बैठकर आपकी जीत के लिए अनुष्ठान करुंगी,
और जब तक आप वापस नहीं आ जाते मैं अपना संकल्प नही छोडूगीं।जलंधर तो युद्ध में चले गए और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गई।उसकी इस सच्ची निष्ठा वाले पूजा अनुष्ठान और संकल्प की वजह से जलंधर इतना ताकतवर हो गया था
या फिर ऐसा कह लो की वृन्दा की पूजा जलंधर की रक्षाकवच बन कर रक्षा कर रही थी जिस वजह से देवता उस से जीत नही पा रहे थे, सारे देवता जब हारने लगे तो सब देवता भगवान विष्णु जी के पास गए।
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सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि-वृंदा मेरी परम भक्त है मैं उसके साथ छल नहीं कर सकता पर देवता बोले – भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।
भगवान ने जलंधर का ही रूप रखा और वृंदा के महल में पहुंच गए जैसे ही वृंदा ने अपने पति को देखा,वे तुरंत पूजा में से उठ गई और उनके चरण छू लिए इस तरहा से पूजा से हटने की वजह से वृंदा का संकल्प टूट गया,
और उधर युद्ध में देवताओं ने जलंधर को मार दिया और उसका सिर काटकर अलग कर दिया। उनका सिर वृंदा के महल में गिरा जब वृंदा ने देखा कि मेरे पति का सिर तो कटा पड़ा है तो फिर ये जो मेरे सामने खड़े है ये कौन है?
उन्होंने पूछा – आप कौन हैं जिसका स्पर्श मैंने किया,तब भगवान अपने रूप में आ गए पर वे कुछ ना बोल सके,वृंदा सारी बात समझ गई।वृंदा क्रोधित होकर भगवान को श्राप दे दिया की “आप पत्थर के हो जाओ”,भगवान तुंरत पत्थर के हो गए। सभी देवता हाहाकार करने लगे।
लक्ष्मी जी रोने लगीं और प्राथना करने लगीं तब जा कर वृंदा जी ने भगवान को वापस वैसा ही कर दिया और अपने पति का सिर लेकर वे सती हो गई।
उनकी राख से एक पौधा निकला तब भगवान विष्णु जी ने कहा- आज से इनका नाम तुलसी है,और मेरा एक रूप इस पत्थर के रूप में रहेगा जिसे शालिग्राम के नाम से तुलसी जी के साथ ही पूजा जाएगा और मैं बिना तुलसी जी के प्रसाद स्वीकार नहीं करुंगा।
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तब से तुलसी जी की पूजा सभी करने लगे और तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ कार्तिक मास में किया जाता है। देवउठनी एकादशी के दिन इसे तुलसी विवाह के रूप में मनाया जाता है।
तुलसी के प्रकार
प्राचीन समय से ही तुलसी के पौधों का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व के साथ ही औषधीय गुण जन-जन के बीच विख्यात है।
ऐसा माना जाता है कि घर में तुलसी का पौधा लगाने से घर में सकारात्मकता, धन-दौलत, ज्ञान, ऐश्वर्य, शांति, आरोग्य एवं शुद्धता का वास बना रहता है। यही वजह है कि तुलसी को अत्यधिक गुणकारी एवं अद्वितीय भी माना जाता है।
तुलसी को उसके गुणों एवं रंगों के आधार पर कई प्रजातियों में बाँटा गया है इनमें से राम तुलसी और कृष्ण तुलसी भी एक है। यहाँ हम राम और कृष्ण तुलसी के संबंध में जानेंगे।
राम तुलसी एवं कृष्णा तुलसी दोनों का अपना-अपना औषधीय महत्व है। दोनों ही प्रकार के तुलसी के पौधे अनेक रोगों को जड़ से समाप्त करने की क्षमता से परिपूर्ण एवं आयुर्वेदिक औषधि की भांति सहायक एवं गुणकारी हैं।
राम तुलसी
हल्के हरे रंग के पत्तों एवं भूरी छोटी मंजरियों वाली तुलसी को राम तुलसी कहा जाता है। इस तुलसी की टहनियाँ सफेद रंग की होती हैं।
इसकी शाखाएँ भी श्वेताभ वर्ण लिए हुए रहती हैं। इसकी गंध एवं तीक्ष्णता कम होती है। राम तुलसी का प्रयोग कई स्वास्थ्य एवं त्वचा संबंधी रोगों के निवारण के लिए औषधी के रूप में किया जाता है।
काली तुलसी
इसे श्याम तुलसी या काली तुलसी के नाम से भी जाना जाता है। हल्के जामुनी या कृष्ण (काले) रंग की छोटी पत्तियों एवं मंजरियों का यह पौधा जामुनी रंग का होता है। श्याम तुलसी की शाखाएँ लगभग 1 से 3 फुट ऊँची एवं बैगनी आभा वाली होती हैं।
इसके पत्ते 1 से 2 इंच लम्बे एवं अण्डाकार या आयताकार आकृति के होते हैं। कृष्ण तुलसी का प्रयोग विभिन्न तरह के रोगों एवं कफ की समस्या के निवारण के लिए किया जाता है।
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