ashtavakra geeta religious dharmik कथा | अष्टावक्र vs बंदी शास्त्रार्थ युद्ध

Great religious story in hindi – ashtavakra geeta vs bandi – नमस्कार दोस्तों religious story मे आज कि इस सच्ची घटना पर आधारित एक बहुत ही  ज्ञान से भरी कहानी आपको बताने जा रहे है. 

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यह सच्ची घटना है अष्टावक्र (ashtavakra) और महाज्ञानी  बंदी के बीच होने वाले शास्त्रार्थ कि, जिसमे बहुत सी ज्ञान कि बातें निकल कर सामने आई… 

तो चलिए जानते है… 

Video देखो 👉

 

अष्टावक्र (ashtavakra) और बंदी के बीच अद्भुत शस्त्रार्थ | अष्टावक्र vs बंदी | hindi religious story

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Dharmik

*अष्टावक्र  गीता* Ashtavakra Geeta 

अष्टावक्र गीता कि यह वो घटना है ज़ब तथाकथित एक बड़े ज्ञानी अथवा पंडित “बंदी” का सामना सीधे सीधे अष्टावक्र से हुआ.ये बंदी वहीं थे जो राजा जनक के दरबार मे काफ़ी प्रचलित थे, इन्हे उपनिषदों एवं शास्त्रों का ज्ञान भली भाती था..और ये वहीं पंडित थे जिन्होंने अष्टावक्र के पिता कोहोड को शास्त्रार्थ मे हरा दिया था.

और शास्त्रार्थ मे पराजित होने के बाद कि शर्त यह थीं कि जो व्यक्ति शास्त्रार्थ मे पराजित होगा उसको जल समाधि लेनी होगी..

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तो इन सब शर्तो को ध्यान मे रखते हुए ज्ञानी पंडित बंदी और कोहोड के बीच मे शास्त्रार्थ हुआ  जिसमे बंदी जीत गया…. और कोहोड को शर्त के अनुसार जलसमाधि लेनी पड़ी थीं..

जब अष्टावक्र को इन सब बातो का पता चला तो… अष्टावक्र ने बंदी कि इस शर्त को गलत माना..

जिसके चलते अष्टावक्र ने बहुत ज्ञान हासिल किया. अष्टावक्र अपने पिता के एक भयंकर श्राप की वजह से  शरीर के  आठ जगहों से टेढ़ा ही पैदा हुआ था, इसलिए उनके पिता ने उनका नाम अष्टावक्र रख दिया था. 

अष्टवज्र बहुत ही बुद्धिमान थे और ज्ञानी भी..कुछ सालों बाद एक दिन पंडित “बंदी” का सामना कोहोड के बेटे अष्टावक्र से हुआ..

अष्टावक्र ने पंडित “बंदी” को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा

दोनों के बीच शास्त्रार्थ शुरू हुआ, देखते ही देखते लोगो का हुजूम जमा हो गया..

बंदी ने सबसे पहला सवाल पुछा – प्रपंच क्या है?

अष्टावक्र ने जवाब दिया – जो कुछ दिखाई देता है जो भी कुछ, वह सब प्रपंच है…

अब अष्टावक्र ने पुछा कि जो दिखता है उसका तात्यपर्य क्या है?

बंदी कहता है – जो दृष्टिगोचर है मन और इन्द्रियों का विषय है, जिसे मै स्वयं जानता हु वहीं दृश्य है.

अब बंदी पूछता है अष्टावक्र से, जो दृष्टा है उसे कौन जानता है.? तथा स्वयं को कौन देखता है?

अष्टावक्र ने जवाब दिया – उस आत्म को देखने कि जरुरत नहीं पड़ती जिस प्रकार सूर्य को देखने के लिए किसी दूसरे प्रकाश कि आवश्यकता नहीं पड़ती, वह स्वयं प्रकाशमान है..

अब अष्टावक्र ने पुछा यह संसार कहाँ से और कैसे आया?

बंदी ने कहा– यह श्रिष्टि उससे सिर्फ उससे आई है,

इतने मे बंदी पूछता है कि वो कौन है, जिससे यह श्रिस्टी उत्तपन्न हुई. या जिसने बनाया है?

अष्टावक्र बोलते है वह ब्रम्ह है वहीं अपनी माया से इस संसार को रचता है वहीं श्रिष्टि का रचैता, पालनहार, और संहारकर्ता है.

अष्टावक्र ने सवाल पुछा – ब्रम्हा इस संसार कि रचना, पालन, और संघर्ष कैसे करता है?

बंदी कहता है जिस प्रकार मकड़ी अपने जाल को बुनती है उसी मे विचरण करती है और फिर उसी को निगल जाती है ठीक उसी प्रकार ईश्वर इस संसार कि रचना पालन और संघार करता है.

अब बंदी पूछता है ये जीव क्या है?

अष्टावक्र बोलता है – “जीव” यह आत्मा है, वह निर्विकार स्वयं है परन्तु अविद्या और अज्ञानता के प्रभाव मे आकर वह स्वयं को मन और शरीर समझ बैठता है..

और इसी वजह से ही वह इस संसार का अनुभव भी कर रहा होता है..

अब अष्टावक्र पूछते है – यह अविद्या क्या है?

बंदी कहते है – आत्मा को आत्मा समझना, निर्विकार को विकारयुक्त समझना, और इस संसार को ही सत्य समझना यही अविद्या है..

अब ज्ञानी बंदी ने सवाल पुछा – ये विद्या क्या है?

अष्टावक्र कहते है – ये आत्मा का ज्ञान ही विद्या है “सः विद्याये या विमुक्ते” ऐसा ज्ञान जो जो हमें सारे दुखो, पीड़ा, अज्ञान, प्रतियोगिताओ, ब्रम्ह और ब्राम्हण कल्पनाओ से मुक्ति दिलाए,..

जो हमें द्वैध के भाव से हम दो अलग अलग है के भाव से, अलगाव के विचार से, ईर्षा भाव से, तुम और मैं के भेद से मुक्ति दिलाए वो ज्ञान है.

पहला मार्ग यह जानना कि ब्रम्ह क्या नहीं है?

जो ब्रम्ह नहीं है उसका निषेध करना, सब नाम रूप गुण, और परिवर्तन शील वस्तुओ का निषेध कर निर्विकार को जानना और

दूसरा मार्ग सत्य जैसा है उसे बिलकुल वैसा ही पहचानना और वह अस्तित्व रूप है उसके बिना संसार का अस्तित्व ही नहीं है.

वह ब्रम्ह ही था ब्रम्ह ही है और इसलिए मैं ब्रम्ह हु तुम ब्रम्ह हो और सब ब्रम्ह है.

अब अष्टावक्र ने पुछा – ब्रम्ह को कैसे जाना जा सकता है?

बंदी ने कहा – ब्रम्ह को सही सामाजिक व्यवहार आध्यात्मिक चिंतन, ध्यानपूर्वक सुनने, नित्य अनुभवों पर विचार करने,और निष्कर्षो पर मनन करने तथा समाधी मे जा कर जाना जा सकता है.

बंदी से सवाल पुछा – “ब्रम्ह ज्ञानी के लक्षण क्या है?

अष्टावक्र बोला – यदि कोई दावा करता है कि उसने ब्रम्ह को जान लिया है तो समझो वो ब्रम्ह को नहीं जानता, क्योंकि ब्रम्ह को जानने के साथ ही ब्रम्ह को जानने का अहंकार ही मिट   जाता है.

बंदी ने फिर सवाल पुछा कि क्या उसे तर्क से जाना जा सकता है?

अष्टावक्र बोले – नहीं, परन्तु तर्क सहायक हो सकते है.

इस पर अष्टावक्र ने पूछा  कि क्या उसे प्रार्थना और भक्ति से जाना जा सकता है?

बंदी बोले – “नहीं” मगर प्रार्थना और भक्ति सहायक हो सकते है..

 

बंदी ने बोला – क्या उसे योग और मनन से जाना जा सकता है?

अष्टावक्र बोले – “नहीं” परन्तु योग और मनन सहायक हो सकते है.

अब ऐसे मे बंदी और अष्टावक्र के बीच जबरदस्त शास्त्रार्थ चल रहा था तभी अचानक बंदी निरुत्तर हो गया… कोई सवाल ना पूछ पाया…

 

इस तरह महाज्ञानी बंदी शास्त्रार्थ मे अष्टावक्र से पराजित हो गया..उसने अपनी हार स्वीकार कर ली..

इसी के साथ अष्टावक्र कि जय जय कर होने लगी….इधर बंदी बोलते है शर्त के अनुसार मैं जल समाधी लेने जा रहा हु..

तभी अष्टावक्र बड़े ही विनम्र भाव से बोलते है, मैं आपको जल समाधी देने नहीं आया हु..

आपको याद होगा कि आपकी इस शर्त कि वजह से ना जाने कितने निर्दोष विद्वानों कि जान गई है..

आचार्य बंदी, याद करो वो दिन ज़ब अपने आचार्य कोहोड को शास्त्रार्थ मे पराजित कर दिया था.. और मैं उन्ही आचार्य कोहोड का पुत्र हूं.

उस दिन वह पराजित थे और आज तुम पराजित हो. और मैं विजय हूं.मैं चाहू तो तुम्हे जाल समाधी दे सकता हूं..

परन्तु मे ऐसा नहीं करूंगा आचार्य. ये क्षमा ही मेरा प्रतिशोध है. इसलिए मे आपको क्षमा करता हु आचार्य बंदी.

आचार्य बंदी कहते है… हे बाल ज्ञानी तुमने तो प्राण लेने से भी बड़ा दंड दे दिया है मुझे..

इसके बाद अष्टावक्र कहते है..
“शास्त्र को शस्त्र मत बनाओ शास्त्र जीवन का विकास करती है.. और शस्त्र जीवन का नाश करती है..

जितना पुराना है हिमालय, जितनी पुरानी है ये गंगा. उतना ही पुराना यह सत्य है. हिंसा से कभी भी किसी ने किसी को नहीं जीता..

दोस्तों अष्टावक्र के वो सभी शब्द परम ज्ञान कि तरफ इशारा करते है यदि आप भी अष्टावक्र कि बाकी गई बातो पर ध्यान देंगे, चिंतन करेंगे तो आपको परम ज्ञान कि अनुभूति होगी..

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