Dev Uthani Ekadashi 2023 kab hai | dev uthani ekadashi katha | dev uthani ekadashi pooja vidhi | आइये जानते हैं देव उठनी एकादशी की तिथि, मुहूर्त, पूजा विधि | महत्व, पौराणिक कथा और व्रत पारण का समय
शास्त्रो मे देव उठनी एकादशी का बहुत बड़ा महत्व बताया गया है |
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Dev Uthani Ekadashi 2023 kab hai
इस बार देव उठनी एकादशी तीन नवंबर को दिन गुरुवार से रात 11 बजकर 3 मिनट से शुरु हो जाएगी.4 माह से क्षीर सागर मे गहरी निद्रा से जागने के बाद श्रीस्टि के पालनहार इसी दिन पुनः सृष्टि के कार्यभार को सँभालते है.
सोमवार 15 नवंबर को 6 बजकर 39 मिनट पर इस एकादशी का समापन होगा.
Dev Uthani Ekadashi | देव उठनी एकादशी क्या है
देव उठनी का अर्थ होता है ईश्वर का निद्रा से जागना | जब श्री हरि भगवान विष्णु 4 माह की योग निद्रा से जागते है उसी समय को देव उठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है | देव शयनी एकादशी के समाप्त होते ही देव उठनी एकादशी प्रारम्भ हो जाती है|
देव शयनी एकादशी का अर्थ है की इस समय श्री हरी बेकुंठ धाम मे शेष नाग पर सूतल अवस्था मे विश्राम करते है या यूं कह लो की गहरी योग निद्रा मे होते है इसीलिए इस समय को देव शयनी एकादशी कहते है जो की असाढ़ माह के शुक्ल पक्ष से शुरू होती है | जिस दिन से प्रारम्भ होती है उसी दिन इस एकादशी व्रत को रखा जाता है |
देव शयनी एकादशी असाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से प्रारम्भ होकर कार्तिक माह की शुल्क पक्ष को खत्म होती है यानि इसी समय जब श्री हरि भगवान विष्णु 4 माह की योग निद्रा से जागते है |
Dev uthani ekadashi क्यों मनाई जाती है?
मनचाहा वरदान पाने हेतु भक्त सच्चे मन व भक्ति भाव के साथ इस व्रत को रखते है |
कथा के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु चार माह की लंबी निद्रा से जागते हैं। इसलिए इस एकादशी को देवोत्थान या देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। आम भाषा में इसे देवउठनी – ग्यारस और ड्योठान या देओठनी के नाम से जाना जाता है।
मान्यताओं के अनुसार इस दिन तुलसी और भगवान शालिग्राम का विवाह होता है| पत्थर रूपी शालीग्राम स्वयं विष्णु अवतार ही है.
देवउठनी एकादशी व्रत कथा -1
कथा के अनुसार श्री कृष्ण की पत्नी सत्यभामा को अपनी खूबसूरती पर बहुत गर्व था, और वह ऐसा सोचती थी, खूबसूरत होने के कारण हीं श्री कृष्ण ने उन्हें सबसे अधिक प्रेम करते हैं। इसलिए उन्होंने नारद जी से एक दिन ऐसा कहा कि आप मुझे ऐसा आशीर्वाद दीजिए, भगवान श्री कृष्ण अगले जन्म में भी मुझे पति के रूप में मिले।
जिसके बाद नारद जी ने कहा अगर आप अपनी कोई भी प्रिय वस्तु मुझे इस जन्म में दान में दे देती हैं, तो अगले जन्म में वह वस्तु आपको जरूर मिलेगी। यह बात सुनकर सत्यभामा ने श्री कृष्ण जी को दान के रूप में नारद को दे दिया।
लेकिन जैसे ही नारद श्री कृष्ण भगवान को दान के रूप में लेकर जाने लगे, तो उनकी अन्य रानियां ने ऐसा करने से रोक दिया। इसके बाद नारद जी बोले मुझे श्री कृष्ण जी दान के रूप में मिल गए हैं।
अगर आप सभी को श्री कृष्ण चाहिए तो इनके शरीर के वजन के बराबर सोना और रत्न देना होगा। इसके बाद श्री कृष्ण को एक तराजू के पलड़े में बिठा दिया गया, और दूसरे पलड़े में सोना चांदी हीरे रखा जाने लगा। फिर भी श्री कृष्ण का पलड़ा टस से मस नहीं हुआ। यह देख सत्यभामा काफी लज्जित हुई।
जब इस प्रकरण के बारे में श्री कृष्ण की दूसरी पत्नी रुक्मणी को पता चला, तो उन्होंने तुलसी पूजा किया, और तुलसी का एक पत्थर लेकर उसे दूसरे पलड़े पर रख दिया। इसके बाद श्री कृष्ण का पलड़ा और दूसरा पलड़ा जिस पर तुलसी का पत्ता रखा गया था, दोनों बराबर हो गया। नारद जी उस तुलसी के पत्ते को लेकर स्वर्ग चले गए और इस तरह से रुक्मणी ने पति परमेश्वर के सौभाग्य की रक्षा की। तभी से तुलसी को महत्व देते हुए देव उठानी एकादशी का व्रत रखा जाने लगा, और इस दिन तुलसी पूजन होने लगा।
देवउठनी एकादशी व्रत कथा -2
इसके अलावा दूसरी कथा के अनुसार एक राज्य में एक राजा अपनी प्रजा को काफी खुश रखता था और एकादशी के दिन अन्न बेचना प्रतिबंधित रखता था, इस दिन सभी लोग उस राज्य में फलहार रखते थे। एक बार की बात है, भगवान ने परीक्षा लेने के लिए सुंदर स्त्री का भेष बदलकर उस राज्य में सड़क किनारे बैठ गये।
ऐसे में जब राजा उस उस जगह से गुजरे तो सुंदर स्त्री को देखकर हैरान रह गयें, और उससे पूछा तुम यहां क्या कर रही हो। तब स्त्री का रूप धारण किए भगवान ने बोला, मेरा कोई नहीं है मैं ऐसे ही घूम कर अपना गुजारा करती हूं। जिसके बाद राजा ने कहा तुम मेरे साथ चलो, तुम्हें महल में रानी बनाकर रखूंगा, तब सुंदर स्त्री ने एक शर्त रखते हुए कहा, मैं आपके साथ तभी चलूंगी, जब आप अपने राज्य का अधिकार मेरे हाथों में सौंप देंगे। और जो भी मैं बनाऊंगी आप वही खाएंगे।
राजा उसके सुंदर रूप से आकर्षित थे शर्त मान गए। इस घटना के अगले दिन ही एकादशी थी, उस स्त्री ने आदेश दिया कि राज्य के सभी कोने में एकादशी के दिन अन्न बेचा जाये। उस सुंदर स्त्री ने घर में मांस मछली बनवाया, और राजा को खाने के लिए कहा। राजा ने कहा मैं सिर्फ फल खाऊंगा। इसके बाद रानी ने राजा को अपनी शर्त याद दिलाए, आपने कहा था जो मैं कहूंगी आप वही करेंगे। ऐसे में अगर आपने मेरी बात नहीं मानी मांस मछली नहीं खाया तो मैं आपके लड़के का सर कटवा दूंगी। राजा ने इस वाक्या के बारे में अपनी बड़ी रानी को बताया, तो रानी ने उन्हें अपना धर्म न छोड़ने का सलाह दिया, और बेटे की कुर्बानी देने की बात कही।
जब राजा के बेटे को यह बात पता चली, तो उसने भी पिता धर्म का पालन के लिए, हंसी-हंसी जान देने को तैयार हो गया। लेकिन जैसे ही उस सुंदर स्त्री के पास राजा अपने बेटे का सिर देने के लिए पहुंचे, तो सुंदर स्त्री ने भगवान विष्णु का रूप धारण कर लिया, और कहा तुम अपनी परीक्षा में पास हो गए, तुम्हारे इस धर्म पालन से मैं बहुत प्रसन्न हूं वरदान में क्या चाहते हो बताओ? तब राजा ने कहां हें प्रभु आप मेरा उद्धार करें, परमलोक को अपने साथ लेकर चले। इसके बाद राजा अपना सारा राजपाट सौंपकर पुत्र को सौंप कर प्रभु के साथ चले गए। और तभी से देव उठानी एकादशी व्रत हिंदू धर्म के सभी लोग विधिपूर्वक मानने लगे।
देवउठनी एकादशी व्रत कथा -3
तीसरी कथा के अनुसार शंखासुर नामक राक्षस ने तीनों लोकों में उत्पात मचाया। तब सभी देवी देवता इस राक्षस से छुटकारा पाने के लिए भगवान विष्णु के पास गए। इसके बाद से भगवान विष्णु ने इस राक्षस से लगातार कई वर्षों तक युद्ध किया और युद्ध में शंखासुर नामक राक्षस मारा गया। इसके बाद भगवान विष्णु विश्राम करने के लिए चले गए,और उनकी नींद कार्तिक शुक्ल एकादशी को खुली। जिसके बाद सभी देवी देवताओं ने उनकी पूजा-अर्चना की। इस कथा से स्पष्ट होता है भगवान विष्णु ने शंखासुर के प्रति देवताओं की रक्षा की और उसे नष्ट किया, जिससे धर्म और न्याय की विजय हुई। यह कथा हिन्दू धर्म में दुर्बलता और अधर्म के खिलाफ धर्म की जीत का प्रतीक मानी जाती है। यही वजह है हिंदू धर्म में लोग देव उठानी एकादशी के दिन धर्म की रक्षा और समृद्धि के लिए व्रत रखते हैं।
Dev uthani vrat pooja vidhi
👉भजन के समय घंटा, शंख, मृदंग, नगाड़े और वीणा बजाएं।
👉 गायन के रूप मे इस मंत्र का उच्चारण करते हुए भगवान को जगाएं : –
‘उत्तिष्ठ गोविन्द त्यज निद्रां जगत्पतये।
त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्॥’
‘उत्थिते चेष्टते सर्वमुत्तिष्ठोत्तिष्ठ माधव।
गतामेघा वियच्चैव निर्मलं निर्मलादिशः॥’
‘शारदानि च पुष्पाणि गृहाण मम केशव।’
👉पूजन के लिए भगवान का मन्दिर अथवा सिंहासन को विभिन्न प्रकार के लता पत्र, फल, पुष्प और वंदनबार आदि से सजाएं।
👉 आंगन में देवोत्थान का चित्र बनाकर वहाँ बड़ी टोकरी या बर्तन मे फल , पकवान, सिंघाड़े, गन्ने आदि चढ़ाकर डलिया से ढंक दें तथा संध्या मे घी के दीपक जलाएं।
👉आरती गायन करते हये श्रद्धापूर्वक पूजन तथा दीपक, कपूर आदि से आरती करें।
👉इसके बाद इस मंत्र का उच्चरण करते हुए पुष्प अर्पित करें :
‘यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन।
तेह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्तिदेवाः॥’
Conclusion –
इस तरह, देव उठानी एकादशी व्रत के माध्यम से हिंदू धर्म के लोगों को आत्मशुद्धि, पापों के क्षय, और भगवान के प्रति भक्ति का मार्ग प्राप्त होता है। ये व्रत हमें धार्मिकता, नैतिकता, और आध्यात्मिकता की महत्वपूर्ण सीखें देते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि आपको यह आर्टिकल जल्दी पसंद आया होगा, ऐसे ही धार्मिक और तमाम जानकारी के बारे में जानने के लिए जुड़े रहे हमारे वेबसाइट Gyan Darshan के साथ पूरा आर्टिकल पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।
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