536 ईस्वी विश्व का सबसे खराब साल

536 ईस्वी विश्व का सबसे खराब साल –दोस्तों आज के समय में यदि किसी से पूछा जाए, कि उनकी जिन्दगी का सबसे खराब साल कौन-सा रहा है,

 तो अधिकतर लोगों का जवाब होगा, कि साल 2020 और साल 2021 उनकी पूरी लाइफ के सबसे खराब साल रहे है।

इन दो सालों के दौरान कोरोना महामारी ने पूरे विश्व को अपनी चपेट में लिया था, और अब भी यह महामारी पूरी तरह से शांत नहीं हुई है।

लेकिन हिस्ट्री एक्सपर्ट्स की माने, तो इतिहास के पन्नों में “इससे भी बुरे दौर दर्ज है”।

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536 ईस्वी विश्व का सबसे खराब साल

एक बार जब ये सवाल सामने आया कि इतिहास का वह कौन-सा साल है, जिसमें कोई भी व्यक्ति कभी जाना पसंद नहीं करेगा,

तब हार्वर्ड युनिवर्सिटी के प्रोफेसर माइकल एमसी कोर्मिक (Michael McCormick) ने कहा कि वे 536 ईस्वी में जाना कभी पसंद नहीं करेंगे।

 536 ईस्वी को इतिहास का सबसे बुरा साल माना जाता है।आखिर क्यों?

आखिर इस साल में ऐसा क्या हुआ था कि इसका नाम सुनकर भी लोगों की रूह कांप जाती है।

 क्या उस समय कोई युद्ध हुआ था,…… या फिर कोई भयंकर बीमारी आ गई थी।

जी नहीं,ऐसा भी नहीं हुआ था,

बल्कि ये मानव सभ्यता के इतिहास का वो ख़ौफ़नाल दौर माना जाता है जिसमे मनुष्य की मौजूदगी मे प्रकृति ने सबसे बड़ा मौत का तांडव खेला था, एक ऐसा तांडव जो एक दो महीने नहीं, बल्कि कई साल तक चलता रहा, परिस्थितिया पहले जैसी बनने मे 9 से 10 साल लग गए.

आखिर ऐसा क्यों और कैसे हुआ था, ये आज हम आपको इस वीडियो के माध्यम से बताने जा रहे, तो अंत तक बने रहे इस वीडियो के साथ और दिल थामकर बैठ जाओ उस ख़ौफ़नाक मंजर से रूबरू होने के लिये.

 

536 ईस्वी के शुरुआती दौर मे तो सब कुछ ठीक चल रहा था, पर एक दिन,.. लोग जब सुबह सोकर उठते है, तो उनके घरों के बाहर अचानक अंधेरा छाया होता है।

हर जगह सिर्फ काले बादल और धूएं के गुबार नज़र आते है।आसमान में सूरज गायब होता है।

हर कोई यह देखकर हैरान हो जाता है कि दुनिया में हो क्या रहा है। एक दो दिन तक लोगों को लगा कि सिर्फ मामूली तुफान या मौसम में परिवर्तन के कारण ऐसा हो रहा होगा।

लेकिन धीरे धीरे ज़ब इस धूएं और काले बादलों ने पूरे यूरोप से लेकर,मिडिल ईस्ट के देशों और एशिया के अधिकांश देशों को अपनी चपेट में लेना शुरू किया, तब इंसानों मे खलबली मचना शुरू हों गई.

अब,लोग कई दिन तक सूरज के निकलने का इंतजार करते रहे, लेकिन आसामान में सूरज दिखना तो दूर उसकी रोशनी तक धरती पर पहुंचना मुश्किल हों चुकी थी |  हर तरफ सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा था।

उस समय तक लाइट का आविष्कार भी नहीं हुआ था. लोग लालटेन और लकड़ी जलाकर रोशनी करने लगे।

कई दिन… कई हफ्ते.. और कई महीने बीत गए। लेकिन कुछ भी बदला नहीं। 

सूरज ना निकलने के कारण धरती का तापमान लगातार गिरने लगा था। आपको जानकर हैरानी होगी कि गर्मियों के समय में भी चीन जैसे देश का तापमान 2.5 डिग्री सेल्सियस तक लुढ़क गया था।

गर्मियों के मौसम में भी एशियाई देशों में बर्फ पड़ने लगी। पूरे यूरोप से लेकर एशिया तक, सब कुछ जम रहा था।

अत्यधिक ठंड के कारण फसले “बर्बाद” हो चुकी थी। लोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा था। हर कोई,बस सूरज निकलने का इंतजार कर रहा था।

लेकिन एक समय के बाद, लोगों ने सूरज निकलने की उम्मीद भी छोड़ दी। हर कोई सोच रहा था, कि अब दुनिया का अंत नजदीक है। और ये “जो कुछ भी हो रहा है” वो “ईश्वर” की मर्जी से हो रहा है। लोगों को उनके पापों की सजा मिल रही है। 

भयंकर अकाल और सूखे के कारण चारों तरफ भूखमरी फैलने लगी।

ट्रॉपिक ऑफ कैप्रिकॉर्न यानि मकर रेखा के उत्तरी भाग में जीवन की कल्पना करना भी दुष्भर हो रहा था ।

 भूखमरी के कारण लोगों की मौत हो रही थी। उस समय विज्ञान के बारे में भी लोगो को जानकारी नहीं थी और ना ही कोई साइंटिस्ट था जो किसी मशीन से धूएं के अंबार को दूर कर सकता था।

अब लोगों के पास खाने के लिए कुछ नहीं बचा था. अकाल पड़ने से फसल बर्बाद होने के कारण खेती बाड़ी ज़ब बिल्कुल बंद हो गई, तो लोगों ने जानवरो को मारकर खाना शुरू कर दिया।

यहां तक लोग अपने पालतू जानवर जैसे कुत्ते बिल्लियों तक को मारकर खाने लगे।

कुछ इतिहासकार तो ये भी कहते है कि जिन लोगों की मौत उस समय हो रही थी, उन लोगों का मांस यानी शवों का मांस पकाकर भी लोगों ने खाया और खुद को जीवित रखने की कोशिश की। 

लगभग 18 महीने तक सब कुछ ऐसा ही चलता रहा। अब तक लोग हिम्मत हार चुके थे। करोड़ों लोगों की मौत हो चुकी थी।

एक दिन अचानक आसमान में थोड़ी सी चमक नज़र आई और सूरज निकल गया। सूरज को देखते ही लोगों ने राहत की सांस ली। और उन्हें लगा कि अब तो जिन्दगी पहले जैसी सामान्य हो जाएगी। लेकिन प्रकृति में सब कुछ इतना जल्दी नही बदलता।

सूरज आसमान में चमक तो रहा था, लेकिन उसमें वह गर्मी नहीं थी जो 18 महीने पहले लोगों को महसूस होती थी। एक्सपर्ट्स का कहना है कि सूरज को पूरी तरह से अपनी गर्मी बिखेरने के लिए और धरती पर जमी हुई बर्फ को पिघलने में 9 से 10 सालों का वक्त लगा। उस दशक को पिछले 2300 सालों के इतिहास का सबसे ठंडा दशक भी माना जाता है।

 इस अंधकार से लोग अभी तक ठीक से बाहर भी नहीं निकल पाए थे कि सन 540 के दशक में ईस्टर्न रोमन अंपायर में justinian plague बीमारी की शुरूआत हो गई।

इसके अलावा कई जगह ज्वालामुखी विस्फोट भी हुए। पूरी छठी शताब्दी में इसी तरह कुछ ना कुछ होता रहा। इसीलिए 6th century को डार्क एज के नाम से भी जाना जाता है।

536 ईस्वी

उस समय तक लोगों को यह नहीं पता था कि आखिर 18 महीनों तक आधी दुनिया अंधकार में क्यों डूबी रही।

लेकिन अब, साइंटिस्ट्स और इतिहासकारों ने मिलकर इस रहस्य पर से पर्दा उठा दिया है।

536 ईस्वी के समय आइसलैंड के एक ज्वालामुखी में,  भयंकर विस्फोट हुआ था। यह विस्फोट इतना भयंकर था, जिसका लावा दूर-दूर तक गया था। और ज्वालामुखी फटने के कारण ही आसमान में चारों तरफ धूएं के काले बादल छा गए थे,

जो धीरे धीरे यूरोप से लेकर एशिया तक फैल गए और उत्तरी गोलार्ध के अधिकतर हिस्से में सिर्फ अंधकार छा गया।

दूर तक फैले इन काले बादलों की चादर इतनी मोटी थी की इनमे से सूरज की रोशनी का निकल कर धरती पर पहुँच पाना नामुमकिन हों गया था.

इस पूरी घटना की जानकारी प्रोकोपियस of कैसारिया (procopius of caesarea) द्वारा मिलती है, जो छठीं शताब्दी के एक प्रसिद्ध इतिहासकार थे।

उन्होंने इन सबके बारे में काफी विस्तार से लिखा है कि किस तरह लोग सूरज के दर्शन करने के लिए तरस रहे थे और लोगों की भूखमरी के कारण मौत हो रही थी। 

536 ईस्वी के दशक के दौरान कितने लोगों की मौत हुई थी, इस बारे में कोई भी जानकारी स्पष्ट रूप से नहीं लिखी गई है।

लेकिन कुछ इतिहासकारों का कहना है कि जिस तरह से तबाही का मंजर पूरी दुनिया में देखने को मिला था, उसके मुताबिक 25 से 100 मिलियन लोगों की मौत उस समय हुई होगी।

 

इस डार्क एज के अलावा भी इतिहास की कई ऐसी घटनाएं है, जिसने लोगों का जीना दुशवार कर दिया था।

प्रथम विश्व युद्ध और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान दुनिया भर में तबाही देखने को मिली थी। सन 1918 में स्पैनिश फ्लू ने जो कोहराम मचाया था, उसमें 2 करोड़ से अधिक लोगों की मौत हो गई थी।

कुछ इतिहासकार ये आकड़ा 4 से 5 करोड़ भी बताते है। इसके अलावा नाज़ियों, मंगोल्स शासक चंगेज़ खान, अशोका और तैमुर सहित ना जाने कितने ही ऐसे शासक हुए है, जिन्होंने अपनी ज़िन्दगी में लाखों लोगों को मौत के घाट उतार दिया था। लेकिन ये सब भी इतिहास के सबसे बुरे दौर में नहीं गिने जाते।

14वीं शताब्दी के अंत में ब्लैक डेथ नाम की बीमारी ने पूरे यूरोप को अपनी चपेट में ले लिया था, जिससे यूरोप की आधी आबादी की मौत हो गई थी। 

तो दोस्तों उम्मीद करते है आपको ये वीडियो पसंद आई होगी और अब आप कभी भी साल 2020 और 2021 को इतिहास के सबसे बुरा साल तो नहीं कहेंगे।

हालांकि इन दो सालों को आप अपनी जिन्दगी के सबसे बुरे साल जरूर कह सकते है। लेकिन 536 ईस्वी के दौरान लोगों ने कैसे कैसे दिन देखे होंगे इसकी कल्पना करना भी आपके लिए संभव नहीं है।

दोस्तों अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी हो तो इसे लाइक करें और अधिक से अधिक शेयर करना ना भूलें। आज के लिए इतना ही। आपसे फिर मिलेंगे एक नई ढेर सारी रोचक जानकारी के साथ। 

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