धार्मिक कथा – धुंधकारी की तड़पती आत्मा
नमस्कार दोस्तों, स्वागत है आपका आज फिर से ज्ञान से भरी एक और धार्मिक कथा मे. आज की इस धार्मिक कथा मे हम जानेंगे की माता पिता को दुख कष्ट देने वाली औलाद के साथ क्या होता है.
ज़ब किसी के जीवन मे किसी जीव इंसान या जंतु की दुख कष्टो से भरी नकारात्मक ऊर्जा मंडराने लगती है तो ना तो वह व्यक्ति जीवन मे कभी महान बन पाता है, और ना ही जीवन भर सुखी रह पाता है. मरने के बाद तो उसका और भी ज़ादा बुरा सफर शुरू हो जाता है.
चलिए आज इस धार्मिक कथा के माध्यम से एक सच्ची घटना पर आधारित घटना को समझ कर जीवन मे सीख लेते है.
Hanuman chalisa meaning in hindi
Table of Contents
धार्मिक कथा – धुंधकारी की तड़पती आत्मा
अपने माता-पिता की सेवा न करने वाला, अपने माता-पिता को परेशान करने वाला, उन्हें दुःखी करने वाला कभी महान नहीं बन सकता है।
ऐसा व्यक्ति आध्यात्मिक मार्ग में तो कभी भी तरक्की नहीं कर सकता। श्रीमद् भागवतम् के अनुसार गोकर्ण जब काफी लम्बी तपस्या के बाद घर आये तो उन्होंने देखा कि उनका घर तो सुनसान पड़ा है। एक दम विरानी छायी हुई है।
उन्होंने जब भीतर प्रवेश किया तो एक दम खाली था, उनका घर। किसी प्रकार से रात रुकने की व्यवस्था की। रात को बहुत डरावनी आवाज़ें उन्हें आने लगीं।
जैसे अचानक कोई जंगली सूअर उनके कमरे के अन्दर भागा आ रहा हो। फिर उल्लू व बिल्ली के रोने की आवाज़ें आने लगीं।
गोकर्ण समझ गये की यह क्या है? वे कड़कती आवाज़ में बोले – कौन हो तुम? क्या बात है?
गोकर्ण की कड़कड़ती आवाज़ सुन कर, अचानक रोने की आवाज़ आने लगी। कोई दिखाई नहीं दे रहा था , बस आवाज़े ही आ रही थी।
तभी वो रोती हुई मनुष्य की आवाज़ बोली – भाई! मैं धुंधकारी हूँ। मैं आपका भाई धुंधकारी।
मैं बहुत कष्ट में हूँ। मैं बहुत परेशान हूँ। मुझे भूख लगती है, मैं कुछ खा नहीं सकता हूँ। प्यास लगती है तो कुछ भी मैं पी नहीं पाता हूँ।
हालांकि मेरा शरीर नहीं है किन्तु मुझे ऐसा ही लगता रहता है जैसे मैं जल रहा हूँ।
हवा के थपेड़ों से मैं कभी इधर होता हूँ तो कभी उधर। मैं एक स्थान पर टिक भी नहीं पाता हूँ। मेरे भाई! मैं बहुत कष्ट में हूँ। मैं एक प्रेत बन गया हूँ।
गोकर्ण जी कहते हैं — धुंधकारी! तुम प्रेत कैसे हो सकते हो? तुम्हारा तो गया तीर्थ में, पिण्ड दान किया है, मैंने।
धुंधकारी – मैंने पिताजी को इतना परेशान किया की वे सह नहीं पाये, और मेरी वजह से जंगलों में चले गये। उनके जाने के बाद मैं शराब के लिये, मीट इत्यादि खाने के लिये, माँ से पैसे लेता था।
माँ, जब मना करती थी तो मैं माँ को मारता था। माँ मेरे अत्याचारों से, मेरे खराब व्यवहार से, इतना दुःखी हुई की उसने कुएँ में छलांग लगा कर आत्म-हत्या कर ली।
भैया! जिसने अपने माता-पिता को इतना कष्ट दिया हो, उसका पिण्ड दान से कल्याण कैसे हो सकता है? भैया! आप कुछ और उपाय सोचें।
धुंधकारी का कैसे भला हो सकता है, उसके लिये गोकर्णजी ने सूर्य देव से सलाह की। सूर्य देव जी ने कहा – गोकर्ण! भगवद्- भक्ति ही, श्रीमद् भागवतम् कथा अथवा श्रीकृष्ण की कथा ही धुंधकारी का कल्याण कर सकते हैं, और अन्य कोई उपाय नहीं है।
उसके उपरान्त श्रीगोकर्ण जी ने गाँव के सभी लोगों को इकट्ठा कर, विधि विधान से श्रीमद् भागवतम् कथा का आयोजन किया। भगवान श्रीकृष्ण की महिमा कीर्तन का अयोजन किया।
वहीं पर एक बांस गाड़ दिया, ताकि उसमें धुंधकारी रह सके। हवा के थपेड़ों की वजह से वो हरिकथा से वंचित न हो।
इस तरह श्रीकृष्ण महिमा श्रवण करके, श्रीमद् भागवतम् की कथा सुनकर धुंधकारी का कल्याण हुआ।
श्री मदभगवत गीता का मन से रसपान d
अन्यथा उसने तो जीवन में इतने पाप किया थे, कि उनसे मुक्त होना उसके लिये असम्भव था।
क्योंकि जिन माता-पिता ने हमें जन्म दिया,
जिन माता-पिता ने इतने कष्टों के साथ हमें पाला पोसा,
पढ़ाया-लिखाया, बड़ा किया,
जिन माता-पिता ने हमारे सुख के लिये अपने सुखों को छोड़ा,
उन माता-पिता की अगर कोई सेवा न करे, उन माता-पिता को कोई कष्ट दे अथवा परेशान करे तो भगवान कैसे सहन करेंगे? स्वयं विचार करें.
हर माता पिता को अपनी औलादो से यही उम्मीद रहती है की वो उनके बुढ़ापे का सहारा बनेंगे,हमारे बाद उनके वंश को आगे बढाएंगे, पूर्वजों की धरोहर, हमारे दिए हुए संस्कारो और परम्पराओ को पीढ़ी दर पीढ़ी समेट कर रखेंगे,.
लेकिन बहुत से बच्चे गलत संगत मे पड़कर अपने संस्कारो,मर्यादित क्रिया कलापो को ताव पर रख कर ऐसे कर्म कांड करने लगते है जिससे माता पिता बहुत दुखी होते है. सेवा करना तो दूर बात भी नहीं सुनते और बदजुबानी भी करते है.
तो सोच लो ऐसे लोगों के साथ क्या होता है. आपके पास अब भी वक़्त है अपनी गलतियों का पश्चाताप करने के लिए अपनी गलतियों को सुधारो. माता पिता की सेवा मे खुद को पूर्ण समर्पित कर दो.
रोज भगवत गीता का पाठ करो सत्संग सुनो. इससे आपके अंदर की अच्छी प्रवृत्तियां सक्रिय होंगी. आपके अंदर की बुराइयों का नाश होना शुरू होगा. मन सकारात्मक विचारों और अध्यात्म ज्ञान से भरने लगेगा. रोज सुबह शाम ईश्वर का चिंतन करो. आपका कल्याण होगा.
।। जय सियाराम जी।।
।। ॐ नमः शिवाय।।
उम्मीद करता हु यह धार्मिक कथा आपको बहुत अच्छी लगी होगी. इस धार्मिक कथा को लोगों मे शेयर करके आप भी थोड़ा पुण्य कमाए.
हम अपने blog पर जीवन के दुख कष्ट दूर कर सही राह दिखाने वाली एवं मानसिक चेतना को सकारात्मक ऊर्जा प्रदान करने वाली ऐसी ज्ञान से भरी तमाम कहानियाँ लाते रहते है. इसलिए हमारे dlog gyandarshan से बने रहे.
इन्हे भी पढे
- मोक्षप्राप्ति का सही मार्ग
- ज्ञान स भरी धार्मिक कहानियो का अद्भुत संग्रह
- ज्ञान से भरी गुरु नानक जी की अद्भुत कहानिया
- पौराणिक कथा
- New moral story उद्धव के सवाल
- Religious story dharmik kkahani
- धार्मिक ज्ञान – तर्पण का सच्च
- hindi religious stories
- महात्मा बुद्ध और भिखारी की कहानी
- कर्मफल पर आधारित 3 अद्भुत कहानियाँ
- कर्मो का फल – ज्ञान से भरी धार्मिक कहानियाँ
- दान का फल – ज्ञान से भरी religious stories
- भगवान विष्णु के पांच छल
- religious story हनुमानvs बाली
- अध्यात्म ज्ञान क्या होता है