जानिए क्या है पुत्रदा एकादशी – कैसे मनाया जाता है । पूजा विधि – और इसके लाभ –
पुत्रदा एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति तथा संतान की समस्याओं के निवारण के लिए किया जाने वाला व्रत है.
यह व्रत सावन के महीने मे रखा जाता है.
पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) साल में दो बार मनाई जाती है. पौष शुक्ल पक्ष एकादशी और श्रावण शुक्ल पक्ष एकादशी (Ekadashi) दोनों को ही पुत्रदा एकादशी के नाम से जाना जाता है.
सावन की पुत्रदा एकादशी विशेष फलदायी मानी जाती है. इस उपवास को रखने से संतान सम्बंधी हर चिंता और बीमारी -दुख समस्या का निवारण हो जाता है. इस बार सावन की पुत्रदा एकादशी 11 अगस्त यानी आज है.।
कहा पर मनन्यता अधिक है
पुत्रदा एकादशी देश भर में मनाई जाती है लेकिन उत्तर भारत में जहां पौष शुक्ल पक्ष एकादशी को विशेष रूप से मनाया जाता है, वहीं दक्षिण भारत में श्रावण पुत्रदा एकादशी (Sharavan Putrada Ekadashi) का महत्व ज्यादा है.
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क्या है श्रावण पुत्रदा एकादशी मान्यता और लाभ –
मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान की प्राप्ति होती है और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है.
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से वाजपेयी यज्ञ के समान पुण्यफल की प्राप्ति होती है.
साथ ही इस व्रत के प्रभाव से योग्य संतान की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि नि:सतान दंपति अगर पूरे तन, मन और जतन से इस व्रत को करें तो उन्हें संतान सुख अवश्य मिलता है.
ऐसा भी कहा जाता है कि जो कोई पुत्रदा एकादशी की व्रत कथा पढ़ता है, सुनता है या सुनाता है उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती है.
श्रावण पुत्रदा एकादशी की तिथि और शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ: 10 अगस्त 2019 को दोपहर 03 बजकर 39 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त: 11 अगस्त 2019 को शाम 04 बजकर 22 मिनट तक
पारण का समसय: 12 अगस्त 2019 को सुबह 06 बजकर 24 मिनट से सुबह 08 बजकर 38 मिनट तक
श्रावण पुत्रदा एकादशी की व्रत विधि
– एकादशी के दिन सुबह उठकर भगवान विष्णु का स्मरण करें.
– फिर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें.
– अब घर के मंदिर में श्री हरि विष्णु की मूर्ति या फोटो के सामने दीपक जलाकर व्रत का संकल्प लें.
– भगवान विष्णु की प्रतिमा या फोटो को स्नान कराएं और वस्त्र पहनाएं.
– अब भगवान विष्णु को नैवेद्य और फलों का भोग लगाएं. पूजा में तुलसी, मौसमी फल और तिल का प्रयोग करें.
– इसके बाद श्री हरि विष्णु को धूप-दीप दिखाकर विधिवत् पूजा-अर्चना करें और आरती उतारें.
– पूरे दिन निराहार रहें. शाम के समय कथा सुनने के बाद फलाहार करें.
– रात्रि के समय जागरण करते हुए भजन-कीर्तन करें.
– अगले दिन यानी कि द्वादश को ब्राह्मणों को खाना खिलाएं और यथा सामर्थ्य दान दें.
– अंत में खुद भी भोजन ग्रहण कर व्रत का पारण करें.
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श्रावण पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
श्री पद्मपुराण के अनुसार द्वापर युग में महिष्मतीपुरी का राजा महीजित बड़ा ही शांतिप्रिय और धर्म प्रिय था,
लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी. राजा के शुभचिंतकों ने यह बात महामुनि लोमेश को बताई तो उन्होंने बताया कि राजन पूर्व जन्म में एक अत्याचारी, धनहीन वैश्य थे.
इसी एकादशी के दिन दोपहर के समय वे प्यास से व्याकुल होकर एक जलाशय पर पहुंचे, तो वहां गर्मी से पीड़ित एक प्यासी गाय को पानी पीते देखकर उन्होंने उसे रोक दिया और स्वयं पानी पीने लगे. राजा का ऐसा करना धर्म के अनुरूप नहीं था.
अपने पूर्व जन्म के पुण्य कर्मों के फलस्वरूप वे अगले जन्म में राजा तो बने, लेकिन उस एक पाप के कारण संतान विहीन हैं.
महामुनि ने बताया कि राजा के सभी शुभचिंतक अगर श्रावण शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को विधि पूर्वक व्रत करें और उसका पुण्य राजा को दे दें, तो निश्चय ही उन्हें संतान रत्न की प्राप्ति होगी.
इस प्रकार मुनि के निर्देशानुसार प्रजा के साथ-साथ जब राजा ने भी यह व्रत रखा, तो कुछ समय बाद रानी ने एक तेजस्वी संतान को जन्म दिया. तभी से इस एकादशी को श्रावण पुत्रदा एकादशी कहा जाने लगा
जान लीजिये क्या हैं इस व्रत को रखने के नियम ?
– यह व्रत दो प्रकार से रखा जाता है -निर्जल व्रत और फलाहारी या जलीय व्रत
– सामान्यतः निर्जल व्रत पूर्ण रूप से स्वस्थ्य व्यक्ति को ही रखना चाहिए
– अन्य या सामान्य लोगों को फलाहारी या जलीय उपवास रखना चाहिए
– बेहतर होगा कि इस दिन केवल जल और फल का ही सेवन किया जाए
– संतान सम्बन्धी मनोकामनाओं के लिए इस एकादशी के दिन भगवान कृष्ण या श्री नारायण की उपासना करनी चाहिए
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संतान की कामना के लिए क्या करें?
– प्रातः काल पति पत्नी संयुक्त रूप से श्री कृष्ण की उपासना करें
– उन्हें पीले फल , पीले फूल , तुलसी दल और पंचामृत अर्पित करें
– इसके बाद संतान गोपाल मन्त्र का जाप करें
– मंत्र जाप के बाद पति पत्नी संयुक्त रूप से प्रसाद ग्रहण करें
– अगर इस दिन उपवास रखकर प्रक्रियाओं का पालन किया जाय तो ज्यादा अच्छा होगा
यह है संतान गोपाल मंत्र?
– “ॐ क्लीं देवकी सुत गोविन्द वासुदेव जगत्पते , देहि मे तनयं कृष्ण त्वामहम शरणम् गता”
– “ॐ क्लीं कृष्णाय नमः
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