दोस्तों आज हम जानेंगे की, operation blue star kya tha, khalistan kya hai, Jarnail Singh Bhindranwale koun tha और वह कैसे मारा गया.
ऑपरेशन ब्लू स्टार एक ऐसी अनसुनी कहानी जिसने सिर्फ पंजाब ही नहीं बल्कि पूरे भारत के इतिहास को बदल कर रख दिया।
क्या आपने सोचा है की पंजाब जो कभी सबसे विकसित और अमीर राज्य हुआ करता था आखिर ऐसा क्या हुआ कि वहां के नौजवानों ने हाथों में हथियार उठा लिए, आखिर क्यों शुरू हुआ ऑपरेशन ब्लू स्टार और क्यों टेरेरिज्म में गई हजारों युवाओं की जान,
आखिर क्या था ये खालिस्तान बनाने का मुद्दा, और क्या ब्लू स्टार ऑपरेशन ही बना था प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी की हत्या का कारण ? जानेंगे आज के इस वीडियो में, तो दिल थाम कर बैठ जाओ, क्योंकि आज हम एक बार फिर से भारतीय इतिहास की उन घटनाओ से पर्दा उठाने जा रहे हैं जो आपको अंदर तक झींझोंर कर रख देगी.
बस आखिर तक इस आर्टिकल को पढे.
Table of Contents
operation blue star क्या था
ऑपरेशन ब्लूस्टार, एक ऐसा ऑपरेशन था जिसे पंजाब के अमृतसर में स्थित हरी मंदिर साहिब बिल्डिंग को खालिस्तान के सपॉर्टर जनरल सिंह भिंडरावाले और उनके समर्थकों से आजाद कराने के लिए चलाया गया था।
पंजाब को भारत से अलग कर ‘खालिस्तान’ नाम का एक अलग राष्ट्र बनाने की मांग, उन दिनों जोर पकड़ने लगी थी. इसी के चलते तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इस ऑपरेशन को अंजाम देने का फैसला लिया.
अब ये खालिस्तान क्या हैं, खालिस्तान का अर्थ हैं the लैंड of खालसा. यानी सिक्खों के लिये एक अलग राष्ट्र.
अगर हम पंजाब की हिस्ट्री में ऑपरेशन ब्लू स्टार को ब्लैक डे नहीं ब्लैक एरा कहे तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। क्यूँकि ऑपरेशन ब्लू स्टार की स्टार्टिंग तो, बहुत पहले से शुरू हो गई थी.
दरअसल ऑपरेशन ब्लू स्टार इंडियन आर्मी द्वारा चलाया गया एक ऑपरेशन था लेकिन इसकी कहानी जानने से पहले, हम ये जान लेते हैं, की आपरेशन ब्लू स्टार की ज़रूरत क्यों पड़ी।
1947 में जब देश आजाद हुआ था तो अंग्रेज अपना काम कर चुके थे, यानी भारत को दो हिस्सों मे बाटते हुए भारत से पाकिस्तान को अलग कर देने वाली गन्दी रण नीती को सफल कर चुके थे ।
दरअसल बटवारा तो कोई नहीं चाहता था पर ये राजनीती के पद पर बैठे कुछ आला अधिकारीयों की गंदी सोच और राजनीती का नतीजा था जिसके चलते , इस बटवारे की क़ीमत ना जाने कितने भारतीय मासूमों और निर्दोषों को, अपनी जान गंवा कर चुकानी पड़ी थी.
इस बटवारे के बाद, कहीं न कहीं वो पंजाब जो भारत का हिस्सा था, उसके लोगों को लगता था कि उसका सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है और उसका रीज़न भी था ,वो ये की पंजाब का एक समृद्ध राज्य या यूं कह लीजिए कि उसका केंद्र लाहौर, इस बंटवारे में पाकिस्तान के हिस्से चला गया था.
जहां कभी पंजाबियों की हुकूमत चला करती थी. आज वहाँ पाकिस्तानियों का दबदबा हैं.
पंजाब मे सिक्ख समुदाय के कुछ ऐसे लोग भी मौजूद थे जो पंजाब को भारत से अलग देश बनाने की सोच रखते थे. यहीं से जन्म हुआ खालिस्तान का.
जिसके चलते कुछ समय बाद पंजाब में खालिस्तान नाम का अलग देश बनाने की मांग ज़ोर पकड़ने लगी थी।
दरअसल भारत मे उन दिनों भाषा के आधार पर पहला राज्य स्थापित किया गया था इससे सबक लेते हुऐ इसी को आधार व मुद्दा बनाकर क़ई सिक्ख समुदाय भाषा के आधार पर खालिस्तान की मांग कर रहे थे.
वो चाहते थे, कि सिक्खों का एक अलग राज्य होना चाहिए। दरअसल उनका मंसूबा था पहले एक अलग राज्य बनाना फिर बाद मे उसे भारत से अलग राष्ट्र बनाने की मुहिम छेड़ देना.
दरअसल 1973 और 1978 में अकाली दल ने, आनंदपुर साहिब प्रस्ताव पारित किया। जिसके अनुसार ये मांग की गई,की भारत की केंद्र सरकार सिर्फ डिफेन्स, एक्सटरनल अफेयर्स, संचार और करेंसी पर अधिकार रखे,जबकि और जो अन्य मुद्दे है उन्हें राज्यों को पूरी तरह सौंप दिया जाए. उनपर सेंट्रल गवर्नमेंट का कोई अधिकार नहीं होगा.
इस हिसाब से ये चाहते थे कि राज्यों को उनका अधिकार दे दिया जाए जिसमें केंद्र सरकार इंटरफेयर न कर सके ।
इसके साथ ही उनकी माँग थी, कि- चंडीगढ़ सिर्फ पंजाब की ही राजधानी हो, हरियाणा की नहीं, और जितने भी पंजाबी भाषा वाले क्षेत्र है उन्हें पंजाब में शामिल किए जाएँ, इसके साथ ही नदियों के पानी, नहरों व बांध और बिजली आदि मुद्दों पर भी उन्होंने मांग की थी.
पंजाब में ब्लू स्टार ऑपरेशन के सिम्बॉल्स 1978 से ही दिखने शुरू हो गए थे. 1978 से ही पंजाब में हिंसा शुरू हो चुकी थी. उस समय एक नाम बहुत चर्चा में था. वो था सिख धर्म प्रचारक, व संस्था के प्रमुख जनरल सिंह भिंडरावाले का नाम.
दोस्तों 1947 में जन्मे जनरल सिंह भिंडरावाले के बारे में कहा जाता है कि वो हमेशा सिख पहनावे जैसे कि, कच्छा और ढीले कुर्ते में रहते थे.
हथियार के नाम पर उनके पास सिख कल्चर के अनुसार कृपान और स्टील का एक तीर हुआ करता था.
भिंडरावाले को अपनी आंखों से देख चुके पंजाब के जो बुजुर्ग हैं, वो बताते है की, भिंडरावाले का पहनावा काफी आकर्षक हुआ करता था. 6 फुट के इस युवा की बात ही अलग थी,
इनके बोलने का अंदाज़, बहुत अट्रैक्टिव था. और गजब की निगाह थी जिनके सामने सवाल करने या पलट कर जवाब देने की हिम्मत किसी में नहीं थी.
दिन था 13 अप्रैल यानी बैसाखी का, 1978 में बैसाखी के दिन भिंडरावाले के सपोर्टर्स की, निरंकारी ग्रुप से झड़प हो गई थी,इस दौरान भिंडरावाले के 13 समर्थक मारे गए थे.
इस घटना ने भिंडरावाले का नाम सुर्खियों में ला दिया था. ऐसा कहा जाता है, की उस दौर में लोगो के सिर,भिंडरावाले का जादू कुछ ऐसा चढा था, की सिर्फ उनके कहने पर ही लोगों ने बाल और दाढ़ी कटवाना बंद कर दिया यंहा तक की लोग सिगरेट और शराब पीना भी बंद करने लगे थे.
भिंडरांवाले को जनता का समर्थन मिलता देख अकाली दल के नेता भी उनके समर्थन में बयान देने लग गए.
अब जैसे जैसे पॉपुलैरिटी बढ़ी, भिंडरांवाला, भिंडरावाले चौक और महता गुरुद्वारा छोड़ कर पहले स्वर्ण मंदिर में गुरु नानक निवास से भाषण देने लगे और इसके कुछ महीने बाद सिक्खों के अकाल तख्त से अपने भाषण देने लगे.
सन 1982 मे अकाली दल ने, सतलुज-यमुना लिंक नहर बनाने के ख़िलाफ़ अपना ‘नहर रोको मोर्चा’ छेड़ रखा था, जिसके तहत अकाली कार्यकर्ता, लगातार गिरफ़्तारियाँ दे रहे थे।
इसी बीच स्वर्ण मंदिर परिसर से भिंडरांवाले ने अपने साथी, अखिल भारतीय सिक्ख छात्र संघ के प्रमुख, अमरीक सिंह की रिहाई के लिए नया अभियान शुरु किया।
इधर अकालियों ने अपने मोर्चे को भिंडरांवाले के मोर्चे में मिला दिया और धर्म युद्ध मोर्चे के ज़रिये गिरफ़्तारियाँ देने लगे।
धीरे धीरे समय बीता और 1981 के बाद जब पंजाब में हिंसक गतिविधियां बढ़ने लगीं तो भिंडरांवाले के खिलाफ लगातार हिंसक गतिविधियों को बढ़ावा देने के आरोप भी लगने लगे.
लेकिन कभी भिंडरावाले के खिलाफ कार्यवाही नहीं हुई. पुलिस का कहना था कि उनके खिलाफ कार्रवाई करने के लिए कभी संतुष्टिपूर्ण सबूत ही नहीं मिले तो कार्यवाही कैसे होती।
इसी दौरान अप्रैल 1983 में, पंजाब पुलिस के उप महानिरीक्षक ए.एस अटवाल की, दिन दिहाड़े हरमंदिर साहिब परिसर में, गोलियां मारकर हत्या कर दी गई.
इसके कुछ महीने बाद, पंजाब रोडवेज़ की एक बस में घुसे लोगों ने, लगातार फायरिंग से जालंधर के पास कई हिंदुओं को मार डाला।
इन घटनाओं से पुलिस का होंसला लगातार गिरता चला गया. जिसका अंजाम ये हुआ की पंजाब में स्थिति बद से बद्तर होती चली गई.
तभी इंदिरा गाँधी सरकार ने पंजाब में दरबारा सिंह की काँग्रेस सरकार को, सत्ता से बहार कर दिया और पंजाब में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया। लेकिन पंजाब की स्थिति बिगड़ती गई। हर रोज़ हिंसक घटनाओं में लोगो को मारा जा रहा था.
इंदिरा गाँधी की सरकार ने स्थिति को सँभालने के लिए अकाली नेताओं के साथ तीन बार बातचीत की, लेकिन बातचीत उस वक्त ख़त्म हो गई जब हरियाणा में सिक्खों के ख़िलाफ़ हिंसा हुई और 1 जून को स्वर्ण मंदिर परिसर तथा उसके बाहर तैनात केंद्रीय रिज़र्व फाॅर्स के बीच भयंकर गोलीबारी हुई।
1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार से तीन महीने पहले तक इन हिंसक घटनाओं में मरने वाले लोगों की संख्या 298 तक पहुँच चुकी थी. और नॉर्मली अगर हम देखे तो ऑपरेशन ब्लू स्टार के हालात एक जून से ही बनने शुरू हो गए थे.
दोस्तों अब शुरू होता है ऑपरेशन ब्लू स्टार
ऑपरेशन ब्लूस्टार के ज़रिये उस समय भारत देश की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा अमृतसर में हरमंदिर साहिब कॉम्प्लेक्स (स्वर्ण मंदिर) में छिपे सिख आतंकवादियों को बाहर निकालने के लिए चलाया गया एक अभियान था,
इस ऑपरेशन में एक ओर तो कई लोगों की जान चली गई थी वहीं दूसरी तरफ स्वर्ण मंदिर का कुछ हिस्सा भी डैमेज हो गया था.
दरअसल अपनी मांगों पर अड़े चरमपंथी स्वर्ण मंदिर में घुस चुके थे और लगातार हिंसक घटनाओं को अंजाम दे रहे थे।
अपनी मांगों पर अड़े चरमपंथियों को स्वर्ण मंदिर से बाहर निकालने के लिए इंदिरा गांधी को ये फैसला लेना पड़ा, की जल्द ही ऑपरेशन ब्लू स्टार को शुरु किया जाएगा। और इसके लिय सैनिकों को भी तैनात कर दिया गया।
ऑपरेशन ब्लू स्टार में 3 जून को इंडियन आर्मी ने पंजाब के अमृतसर में प्रवेश करलिया था और स्वर्ण मंदिर को पोइरी तरह घेर लिया गया था.
शाम तक कर्फ्यू लगा रहा और 4 जून को मिलिटेंट्स ने उस जगह पर गोलीबारी शुरू कर दी जहाँ टैरेरिस्ट दंगाई छुपे बैठे थे,
मिलिटिरीज़ ने इस मकसद के साथ उन पर हमला किया था ताकी बदले मे वो भी प्रतिक्रिया दें जिससे वो इसका अंदाजा लगा सके की इन आतंकियों के पास कितनी और किस तरह के गोला बारूद और वेपंस मौजूद हैं.
शाम होते होते इंदिरा गांधी, जो कि उस समय भारत की प्राइम मिनिस्टर थी उन्होंने आर्मी को इंस्ट्रक्शन दिए, कि वे स्वर्ण मंदिर में घुस जाएं और ऑपरेशन ब्लू स्टार शुरू कर दें. क़ई घंटो तक चारो तरफ सिर्फ गोलियों की गड़गड़ाहट ही सुनाई दे रही थी हर तरफ खून ही खून नज़र आया.
इसके बाद स्वर्ण मंदिर में जो हुआ उसे आज भी लोग भुला नहीं पाए हैं।
इस ऑपरेशन का रिजल्ट ये निकला की,भीषण ख़ून-ख़राबा हुआ और अकाल तख़्त का बड़ा हिस्सा पूरी तरह तबाह हो गया।
यदि ऐसा ना किया गया होता तो आज या तो पंजाब का बड़ा हिस्सा या फिर पूरा पंजाब खालिस्तान नाम का अलग राष्ट्र बन गया होता.
स्वर्ण मंदिर अकाल तख़्त सिक्खों का सबसे बड़ा धार्मिक केंद्र हैं अकाल तख्त को धार्मिक रुप से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है, कहा जाता है, की अकाल तख़्त को मुगल तख्त से भी ऊंचा बनवाया गया था। जो इस आपरेशन में ख़त्म हो गया। स्वर्ण मंदिर पर भी गोलियाँ चलीं और मन्दिर का भी क़ई हिस्सा डेमेज हुआ । जिसे बाद में रिपेयर करवाया गया।
ऐसा कहा जाता है, कि कई सदियों में पहली बार ऐसा हुआ था, की स्वर्ण मंदिर में पाठ नहीं हुआ हो। इस आपरेशन में छह, सात और आठ जून को वहां पाठ नहीं हो पाया।
इतना ही नहीं,ऐतिहासिक दृष्टि से एक अलग ही मान्यता रखने वाला महत्वपूर्ण सिक्ख पुस्तकालय भी, जल कर राख़ हों गया। जिसे कभी सिक्खों के पूर्वजों ने बनवाया था।
इंडिया के श्वेत पत्र के अनुसार अगर हम बात करें तो ऑपरेशन ब्लू स्टार में 83 सैनिक मारे गए और 249 घायल हुए,
इसी श्वेत पत्र के अनुसार 493 चरमपंथी और आम नागरिक मारे गए थे जबकि 86 घायल हुए और 1592 लोगो को गिरफ्तार किया गया था, लेकिन इन सब आंकड़ों को लेकर अब तक विवाद चल रहा है,
सिक्ख संगठन कहते हैं कि मरने वाले निर्दोष लोगों की संख्या हजारों में है जिसे सरकार द्वारा दबाया गया था। हालांकि इंडियन गवर्नमेंट इसे सपोर्ट नहीं करती है.
ऐसा भी माना जाता है की ऑपरेशन ब्लू स्टार ही इंदिरा गाँधी की मौत की वजह भी बना था.
क्योंकि इस आपरेशन की परमिशन इंदिरा गांधी ने ही दी थी। और इसमें न जाने कितने ही सिक्खों की जान चली गई, उनकी मांगे भी पूरी नहीं हो पाईं थीं.
कहा जाता है कि सिख समुदाय ने ऑपरेशन ब्लू स्टार को हरमंदिर साहिब की बेअदबी यानी निरादर माना था और इंदिरा गांधी को अपने इस कदम की कीमत अपनी जान गंवाकर चुकानी पड़ी थी.
ऑपरेशन ब्लूस्टार के कुछ दिन बाद ही प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके सिक्ख बॉडी गार्ड द्वारा ही हत्या कर दी गई थी.
इंदिरा गांधी की हत्या के बाद तो भारत में हिंसा और दंगो की मानो बाड़ आ गई हो, इन दंगो का रिजल्ट ये हुआ की लगभग 3,000 सिक्ख मारे गए और न जाने कितने ही लोग घायल हो गए जो लाइफ में फिर कभी उठ नहीं पाए.
कई प्रमुख सिक्ख बुद्धिजीवियों ने ऑपरेशन ब्लू स्टार पर सवाल भी उठाए, कि स्थिति को इतना खराब क्यों होने दिया गया, पहले ही कोई क़दम क्यों नहीं उठाए गए, ऐसी कार्रवाई करने की ज़रूरत क्यों पड़ी?
वहीं सरकार की इस कार्रवाई से नाराज़ कई प्रमुख सिक्खों ने या तो अपने पदों से इस्तीफा दे दिया या फिर सरकार द्वारा दिए गए सम्मान वापस लौटा दिए.
वहीं इंदिरा गांधी की हत्या के बाद तो कॉन्ग्रेस और सिक्खों के बीच मानो 36 का आंकड़ा होगया हो।
तो दोस्तों ये थी ऑपरेशन ब्लू स्टार की पूरी कहानी, आपको क्या लगता है, क्या ऑपरेशन ब्लू स्टार को रोका जा सकता था. क्या इस ऑपरेशन के बिना उन दंगो को नहीं रोका जा सकता था, हमे कमेंट बॉक्स में ज़रूर बताइयेगा.
आज भी जब ब्लू स्टार ऑपरेशन की बरसी मनाई जाती है तो चारों तरफ पुलिस और सुरक्षा बलों को तैनात कर दिया जाता है। इसका रीज़न ये है, कि आज भी उस खूनी संघर्ष को कोई भूला नहीं है ख़ासकर सिक्ख, जो आज भी ब्लू स्टार ऑपरेशन की बरसी पर पोस्टर और नारेबाज़ी करते नज़र आते हैं।
तो दोस्तों ये थी operation blue star की पूरी history, जिसमे हमने जाना की, ऑपरेशन ब्लू स्टार क्या था, Jarnail Singh Bhindranwale कौन थे, khalistan क्या था, इंद्रागाँधी की मौत कैसे हुई.
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