best 3 moral stories in hindi कर्मो का फल और दंड

3 moral stories in hindi कर्मो का फल और दंड

 

3 moral stories in hindi कर्मो का फल और दंड – (कर्मो का फल)  हैलो दोतों कैसे हो आप सब लोग , आशा करता हु अच्छे ही होंगे । दोस्तो ये बाते तो आप सब लोगो ने अपनी ज़िंदगी मे कई बार सुनी होंगी ! की   karmo ka fal- (कर्मो का फल ) मिलता ही मिलता है । कर्म चाहे अच्छे हो या बुरे ,फल दोनों का मिलता है । 

 

आपके साथ भी ऐसा हुआ होगा या फिर कसी न किसी की life मे अक्सर ऐसा होते देखा होगा, की उस इंसान ने बहुत बुरे कर्म किए हो और उसे उसकी सज़ा मिली हो । 

 

क्या होते है कर्म ?

दोस्तो ज़िंदगी मे खुद से किया गया या किया जाने वाला कोई भी काम हमारा कर्म होता है । और कर्म दो प्रकार के ही होते है या तो अच्छे कर्म या फिर बुरे कर्म । और यह हमारे कर्म ही होते है जो हमारा आने वाला कल बनाते है । इंसान का भविसस्य इंसान के किए जाने वाले कर्मो पर निर्धारित होता है। 3 moral stories in hindi कर्मो का फल और दंड

 

यदि कर्म अच्छे होंगे तो उसका फल भी अछा ही मिलेगा और यदि कर्म बुरे होने तो उसका फल भी बुरा ही होगा । 

 

 

दोस्तो  कुछ अच्छे कर्म ऐसे भी होते है जिनका फल हमे अगले जन्म मे भी या फिर अगले कई जन्मो तक भी मिलता रहता है ।

 

 

और यह बात आपने कई लोगो के मुह से सुनी होगी की  पिछले जन्म मे ज़रूर मैंने  बहुत अच्छे कर्म किए होंगे जिसका फल मुझे इस जन्म मे भी मिल रहा है । 

 

ठीक इसी प्रकार बुरे कर्म भी जिनका फल अगले कई जन्मो तक झेलना परता है । 3 moral stories in hindi कर्मो का फल और दंड

 

तो इसी से संबन्धित आप लोगो के लिए 4 मज़ेदार कहानिया (hindi stories)  ले कर आया हु ,जो की सच्ची घटना पर आधारित है ।

तो चलिये एक एक करके इन चार कहानियो के

 

माध्यम से हम कर्मो के फल के बारे मे जानते है । जिस से आप भी motivate प्रेरित  हो कर  अपने जीवन मे हमेशा अच्छे कर्म करे । 

 

 

1st moral stories in hindi कर्मो का फल और दंड

दोस्तों इतिहास गवाह रहा है। इंसान जैसा दूसरों के साथ करता है। आज नहीं तो कल उसे वैसा ही भूगतना भी पड़ता है। दिन सबके बदलते है। आइये जानते है की ये दिन किस प्रकार बदलते है।

 

एक बार दो व्यक्ति शहर से धन कमाकर अपने गाँव लौट रहे थे। रास्ते में ही सूर्यास्त हो गया। उन्होंने सोचा आज रात पास के ही गाँव में विश्राम कर लेते है। गाँव में जाकर उन्होंने एक घर का दरवाजा खटखटाया।

 

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उसी घर में उनके लिए खाने और रात को आराम करने का इंतजाम हो गया। उस घर के मालिक ने उनके पास धन को देख लिया था। जिसके कारण उसके मन में उस धन के प्रति लालच आ गया.

 

मकान मालिक में उन यात्रियों को खाना खिलाकर एक कमरे में सुला दिया और अपने आप भी सोने चला गया। उसके मन में एक ख्याल ने जन्म लिया।

 

वह था – अगर इन यात्रियों को मार दिया जाये तो यह सारा धन उसका हो सकता है।

 

उसने कुछ आदमियों को बुलवाया और कहा – मेरे बेटों के कमरे में दो यात्री सो रहे है। उन्हें मारकर ठिकाने लगा दो। इसके बदले मैं तुम्हें बहुत सारा धन दूँगा। वो लोग भी धन के बड़े लालची थे ,जिस वजह से वो लोग  मालिक की बात मानने  ने को तैयार हो गए।

 

इसी बीच उस मकान मालिक के दोनों लड़के घर आ गये और अपने कमरे में उन यात्रियों को देखकर चौक गए।

 

उन यात्रियों से सब कुछ जानने के बाद उन्होंने उन यात्रियों को गेस्ट रूम में सुला दिया और अपने आप उसी कमरे में उन यात्रियों के स्थान पर सो गए।

 

आधी रात को कुछ आदमी उस कमरे में घूसे। उन्होंने पलंग पर दो व्यक्तियों को सोते हुए देखा और उन्हें मारकर उनकी लाश को ठिकाने लगा दिया।

 

जब सुबह हो गयी तो वे दोनों यात्री मकान मालिक के पास पहुँचे और वहाँ से चलने के लिए विदा ली। वह मकान मालिक सोचने लगा। अगर वे लोग ज़िंदा है तो रात में उन लोगों ने किन्हें मारा।

 

 

चलिये जानते हैं इस कहानी से हमें क्या शिक्षा (moral) मिलती है – 

दोस्तों इस  Kahani से मैं आपको यह समझाना चाहता हूँ की जो इंसान जैसा कर्म करता है। उसे वैसा ही फल मिलता है।

जब हम किसी का बुरा सोचते है या करते हैं तो उसका बुरा हो न हो लेकिन बुरा सोचने वाले का या बुरा करने वाले का जरूर बुरा होता है |

कहते है – भगवान के घर देर है अंधेर नहीं। आज नहीं तो कल हर इंसान को अपने कर्मों का फल भोगना ही पड़ता है। जो किया है वो एक बार उसके साथ भी होगा यानि जैसा करोगे वैसा ही भरोगे |

 

जो इंसान किसी दूसरे के साथ बुरा करता है। उसकी जिंदगी में वह बुराई लौटकर आती है। ठीक इसी प्रकार जो इंसान किसी दूसरे के साथ अच्छा करता है।उसकी जिंदगी में वह अच्छाई लौटकर आती है।

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2nd moral stories in hindi कर्मो का फल और दंड 

 

जोधपुर के पास एक गांव था | उस गांव में दो कुत्ते रहते थे | दोनों आपस में गहरे मित्र थे | साथ-साथ रहते तथा सोते थे | उनमें से एक कुत्ता काला था, तो उसका नाम कालू था | दूसरा कुत्ता लाल था, अतः उसका नाम लालू था |

 

एक दिन दोनों कुत्तों ने तीर्थ यात्रा करने की सोची; किंतु वे रास्ता नहीं जानते थे | दोनों ने निश्चय किया कि यात्रा आरंभ तो करें | रास्ता तो अपने आप निकल आएगा |

 

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एक दिन वह दोनों एक साथ तीर्थ यात्रा पर चल दिये | चलते-चलते रात हो गई | वह दोनों एक पेड़ के नीचे सो गये | थके होने के कारण उन्हें नींद आ गई |

 

सुबह होने पर फिर अपनी यात्रा पर चल पड़े | एक गांव के पास पहुंचने पर होते हैं | उन्हें भूख लग आयी | वहां उन्हें कुछ चूहे दिखाई दिये |

 

लालू की पूंछ खड़ी हो गयी | वह कालू से बोला – ” क्यों गंडक जी! आप फरमाओ तो मैं इन दो चार चूहों की चटनी बना डालू |”

 

कालू ने गर्दन हिलाकर कहा – ” नहीं भाई लालू जी! हम तीर्थ यात्रा पर निकले हैं और तीर्थयात्रा में किसी की हत्या करना पाप होता है | तो आप कोई दूसरा उपाय खोजो जिसमें कोई जीव की हत्या ना हो तथा हमें मांस भी ना करना पड़े |”

 

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दोनों कुत्ते एक दोराहे पर रुक गये | वहां पर एक मंदिर था | कुछ देर सुस्ताने के पश्चात दोनों ने फैसला किया कि ” अलग-अलग दिशा की ओर चलना चाहिए | जिसको जो मिलेगा खा लेंगे | एक साथ चलते तो दोनों में से किसी का भी पेट नहीं भरेगा |”

 

दोनों कुत्ते अलग-अलग दिशा में चल पड़े | चलने से पहले उन्होंने तय कर लिया कि वे वापस आकर इसी स्थान पर मिलेंगे |

 

लालू कुत्ता चलते-चलते एक गांव में पहुंचा | गांव में एक ब्राह्मण रहता था | वह पूजा पाठ करके भोजन करने ही जा रहा था | उसकी पत्नी ने उसके लिए थाल सजाकर रखा था |

 

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ब्राह्मण ने भोजन को भोग लगाया ही था, कि लालू कुत्ते ने झट से उसकी थाली में मुंह डाल दिया तथा एक पूरी उठाकर भागा | ब्राह्मण ने “हरे राम! हरे राम” कहा तथा हाथ धो कर उठ गया | उसने अपनी पत्नी से कहा – ” बेचारे यह गंडक जी भी भूखे हैं | सो आप यह थाली इन्हें ही खिला दीजिए |”

 

ब्राह्मण की पत्नी गुस्से से बोली – ” आप यह क्या कह रहे हैं! इस गंडक जी को यह थाली? आप ही कहिए ना इसमें कितने चौखे-चोखे पकवान हैं | खीर, पुड़ियां, दो तरह की सब्जी! अचार, दही |”

 

ब्राह्मण दयाभाव से बोला – ” तुम ठीक कहती हो पर यह भी भूखे होगे | आप तो यह थाली इन्हें ही दे दे | सोच लो कि इनके ही भाग्य में लिखी थी |”

 

 

इसके पश्चात ब्राह्मण ने लालू कुत्ते को खूब पेट भर कर भोजन करवाया | लालू ने उसे खूब दुआएं दी |

 

उधर कालू कुत्ता एक किसान के यहां पहुंचा | किसान अपने खेत में काम कर रहा था | उसकी पत्नी थाल रख कर गई थी | थाल में बाजरे की रोटियां और सांगरीयों का साग था | खेत का काम पूरा करके वह थाल खोलकर खाना खाने को तैयार हुआ ही था, कि कालू ने तुरंत ही उसके भोजन में मुह डाला तथा थोड़ी सी रोटी का टुकड़ा तोड़कर भागा |

 

किसान एकदम गुस्से से भर उठा | उसकी आंखें अंगारों के समान लाल हो गयी | भवे बन गई | उसने अपनी लाठी उठाई | गाली देते हुए उसने लाठी से इतनी जोर से वार किया कि कुत्ते की कमर टूट गयी | वह पीड़ा से चिल्लाने लगा | कमर टूट जाने के कारण वह भाग ही नहीं सका | इसी बीच उसकी कमर में दो चार लाठियां और पड़ गयी | कुत्ता अधमरा हो गया |

 

लालू दोराहे पर खा पीकर मस्त पड़ा था | वह आंखें फाड़-फाड़कर अपने साथी की प्रतीक्षा कर रहा था | उसका साथी उसे कहीं भी नजर नहीं आ रहा था | लाचार तथा उदास होकर वह दोराहे पर बैठ गया |

 

थोड़ी देर बाद उसे कालू नजर आया | वह लपक कर उसकी ओर दौड़ा | उसकी टूटी हुई कमर देखकर वह बहुत दु:खी हुआ | पूछने लगा – ” भाई! तुम्हारे साथ ऐसी बात किसने की? कौन निष्ठुर पापी है | जिसने रोटी के पीछे तुम्हारी कमर ही तोड़ डाली |”

 

कालू की आंखें भर आई | उसने पीड़ा से कहराते हुए सारी कथा सुनाई | कथा सुनाकर वह क्रोध तथा दु:ख में डूबकर बोला – ” मैं उससे अपना बदला जरूर लूंगा! उस किसान को बताऊंगा, कि खुद की कमर किस प्रकार टूटती है |”

 

 

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लालू भी कृतज्ञ होकर बोला – ” मुझे भी उस ब्राह्मण का कर्ज चुकाना है | उसने मुझ पर कितनी कृपा की है | मैं रोम-रोम से उसे आशीष देता हूं |”

 

इसी प्रकार बातचीत करते हुए दोनों कुत्तों ने अंत में यह निश्चय किया, कि उन्हें प्राण त्याग देनी चाहिए तथा प्राण त्यागने के पश्चात उनके घरों में जन्म लेना चाहिए |

 

इत्तेफाक से न तो किसान के कोई पुत्र था और ना ही ब्राह्मण के | दोनों कुत्तों ने मंदिर के आगे जाकर अपने प्राण त्याग दिए एक ही पल में दोनों मृत्यु को प्राप्त हो गए |

 

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कालू ने किसान के घर जन्म लिया | किसान बहुत प्रसन्न हुआ; किंतु उसकी खुशी अगले ही पल विलुप्त हो गयी | घर में इस पुत्र के पैदा होते ही उसका बैल मर गया | पत्नी अस्वस्थ रहने लगी | पहले जन्मदिन पर किसान के हरे- भरे खेत को जानवर चट कर गये |

 

उधर ब्राह्मण के घर भी बेटा पैदा हुआ | पुत्र के उत्पन्न होते ही राज दरबार में ब्राह्मण की पदवी ऊंची हो गयी | ब्राह्मण ने राजा को एक युद्ध में जीत की बात बताई | राजा युद्ध जीत गया |

 

इससे प्रसन्न होकर राजा ने ब्राह्मण को राज पंडित नियुक्त कर दिया | उसे एक महल तथा अपार धन भेंट किया | जैसे-जैसे ब्राह्मण का बेटा बड़ा होता गया |

 

वैसे-वैसे वह भी बाप के समान तेजस्वी निकलता गया | उसने छोटी उम्र में सारे शास्त्रों का अध्ययन कर लिया | वह बड़े-बड़े पंडितों को शास्त्रार्थ मैं हरा देता था | इससे ब्राह्मण की कृति में चार चांद लग गए |

 

किसान का बेटा बदकारी निकला | वह बात-बात पर अपने बाप को डांटता था | उसे गालियां बकता था | वह जुआ खेलकर बचे-कुचे धन को उड़ाने लगा | किसान बहुत ही दु:खी हुआ | अंत में उसने सोचा कि इस को सुधारने का कोई उपाय करना चाहिए | इस तरह विचार करते हुए वह एक बुद्धिमान व्यक्ति के पास पहुंचा | उसने उसके सामने अपनी समस्या रखी।

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इस संसार में जो जैसा कर्म करता है –  | उसे वैसा ही फल मिलता है |”

 

 

 

3rd moral stories in hindi कर्मो का फल और दंड

 

 

एक व्यक्ति अपने स्कूटर से घर जा रहा था। कुछ दूर जाने के बाद उसे सड़क पर एक बूढ़ी औरत दिखाई दी। जो कि बहुत ही थकी हुई सी लग रही थी और उसके चेहरे से मानों ऐसा लग रहा था कि वह उस सड़क पर बहुत समय से किसी यातायात साधन का इंतज़ार कर रही थी।

 

 

 

उस व्यक्ति ने अपना स्कूटर उस औरत के पास लाकर रोका और बूढ़ी औरत से पूछा ”माताजी आपको कहाँ जाना है? आपको जहाँ भी जाना है, मैं आपको छोड़ दूंगा।”

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अंजान आदमी को अचानक अपने सामने देखकर वह वृद्ध महिला थोड़ा घबरा गई। वृद्धा की घबराहट को वह व्यक्ति समझ गया और उसने मुस्कुराते हुए कहा “माता जी मेरा नाम सुनील है, आप चिंता ना करे मैं आपको सकुशल आपके घर तक छोड़ दूंगा। आप निश्चिन्त होकर मेरे साथ मेरे स्कूटर पर चलिये।”

 

सुनील की बातें सुनकर वृद्ध महिला को तसल्ली हुई और साथ आने की सहमति देते हुए पूछा “तुम कितने रुपये लोगे मुझे घर तक छोड़ने का?”

 

सुनील ने हँसते हुए कहा “माताजी मुझे कुछ नही चाहिए किंतु फिर भी आप कुछ देना ही चाहती है तो बस आप भविष्य में अपनी तरफ़ से किसी ज़रूरतमंद कि किसी भी तरह से मदद कर देना।” अपनी बात को पूरी करके सुनील ने उस वृद्धा को अपने स्कूटर पर बिठाया और उनके घर पर छोड़ने के पश्चात वहाँ से चला गया।

 

 

कुछ दिनों बाद वह वृद्ध औरत कुछ सामान खरीदने एक दुकान पर गई। दुकान से बाहर आकर वृद्धा ने देखा कि उसी दुकान के बाहर एक गर्भवती महिला कुछ खाने-पीने का सामान बेच रही है।

 

उस वृद्ध महिला को यह समझते देर नही लगी कि जरूर इस लड़की की कोई बड़ी मज़बूरी होगी जो इसे इस अवस्था में भी काम करना पड़ रहा है। वृद्धा के मन में उस महिला के लिए मदद की इच्छा जागृत हुई और उस

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गर्भवती महिला से कुछ खाने का सामान खरीद लिया। साथ ही वृद्धा ने चुपके से कुछ पैसे उसकी दुकान के पास इस भावना से रख दिए कि उसकी कुछ मदद हो जाएगी। ऐसा करके वह वृद्ध महिला वहां से तुरंत चली गई।

 

शाम को दुकान बंद करते वक्त उस गर्भवती महिला ने देखा कि उसकी दुकान पर हज़ार का नोट रखा हुआ था। हज़ार रूपये देखकर वह बहुत खुश हुई और अपने घर जाकर उसने अपने पति से कहा ”सुनील मैं जानती हूँ मेरे

 

गर्भवती होने की वजह से घर का बहुत खर्चा बढ़ गया है परन्तु आज तुम्हे चिंता करने की कोई जरूरत नही क्योंकि मेरी दवाई के पैसों का इंतज़ाम हो गया है। मैंने आज ज्यादा पैसे कमाए है।” ऐसा कहकर उसने भगवान का शुक्रिया किया और अपने पति के गले लग गयी।

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चलिये जानते है की कहानी से क्या सीख (moral) मिलती है

 3 moral stories in hindi से सीख 

दोस्तों, यह सच है की हम जब भी किसी की निस्वार्थ भाव से सहायता करते हैं, तो हमारे द्वारा किया हुआ अच्छा काम ज़िन्दगी में कभी ना कभी किसी ना किसी रूप में वापस आता जरूर है वो भी कई गुणा होकर। इसलिए जब भी किसी की मदद या सेवा करो तो दिल से करो।

 

 

कभी भी मन में फल की आशा ना रखो। बिना फल की चाह से किया हुआ कर्म हमें मोक्ष देता है। महाग्रंथ गीता भी हमें यही संदेश देती है – ”कर्म करो फल की चिंता मत करो” बस कर्म में अच्छाई और वचन में सच्चाई को अपना लीजिए आपका भला अपने आप हो जायेगा।

 

 

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