chandrayaan-2 launch moon mission GSLV MK-3 ISRO

chandrayaan-2 launch -चंद्रयान-2 सोमवार दोपहर 2.43 बजे श्रीहरिकोटा (आंध्रप्रदेश) के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र (satish dhawan space centre in sriharikota andhra pradesh) से लॉन्च हुआ।

 

chandrayaan-2 launch प्रक्षेपण के 17 मिनट बाद ही यान सफलतापूर्वक पृथ्वी की कक्षा में पहुंच गया। इस मौके पर इसरो के चेयरमैन के सिवन ने कहा कि रॉकेट की गति और हालात सामान्य हैं।

 

लॉन्च के 48 दिन बाद यान चंद्रमा की सतह पर पहुंचेगा चंद्रयान-2 (chandrayaan-2) चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा।चंद्रयान-2 (chandrayaan-2) को बनाने में 978 करोड़ की लागत लगी है।

 

ये पूरे तरीके से स्वदेशी तकनीक से निर्मित हुआ है। कुल 3,850 किलोग्राम वजनी यह अंतरिक्ष यान ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर के साथ गया है।chandrayaan-2

 

21 जुलाई को भारत ने रचा गौरवशाली इतिहास-

 

chandrayaan-2 launch moon mission GSLV MK-3

 

ISRO chandrayaan-2 launch- बना भारत का गौरव शाली इतिहास

 

chandrayaan-2

 

साल 2019 -तारीख 21 जुलाई दिन sundayजी हा दोस्तो यह वही तारीख है जिस दिन भारत ने भारत ने चंद्रमा पर अपने दूसरे महत्वाकांक्षी मिशन चंद्रयान-2 (chandrayaan-2) का देश के सबसे वजनी 43.43 मीटर लंबे जीएसएलवी-एमके3 एम1 रॉकेट की मदद से सोमवार को सफल प्रक्षेपण कर इतिहास रच दिया।

 

यह देश के गौरवशाली इतिहास का सबसे खास पल बनेगा। यान की कामयाब लॉन्चिंग वैज्ञानिकों की अथक मेहनत और 130 करोड़ भारतीयों की इच्छाशक्ति के कारण हुई। यह विज्ञान के नए आयाम खोलेगा। आज हर भारतीय गर्व महसूस कर रहा होगा।

 

(chandrayaan-2)

 

chandrayaan-2 launching मे भारत ऐसा पहला देश 

सिर्फ यही नहीं  , पूरे (world) संसार मे भारत ही पहला ऐसा देश होने जा रहा है जो  चंद्रयान-2  को दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा, आज तक ऐसा कोई देश नहीं हुआ था|

जिसने यान को चाँद के दक्षिणी ध्रुव पर lending करवाई हो । और इसके इलवा चाँद की स्तह पर चंद्रयान-2(chandrayaan-2) की soft lending  करवा के   पूरे world के चौथे नंबर पर अपनी जगह बना लेगा ।

 

जी हा दोस्तो दक्षिणी ध्रुव पर काफी अंधेरा होता है। वहां सूर्य की किरणे भी नहीं पहुंच पाती है। इसलिए किसी भी देश ने आज तक वहां लैंडिंग करने की हिम्मत नहीं की।

chandrayaan-2

 

इस मिशन की सफलता के बाद भारत उन कुल 4 देशों में शामिल हो जाएगा जिन्होंने चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग की है। सॉफ्ट लैंडिंग करना इतना खतरनाक है कि अभी तक अमेरिका, रूस, चीन ही इस कारनामे को अंजाम दे पाए हैं।

 

 

 

 

चलिये जानते हैं चंद्रयान मिशन के बारे में कुछ खास बातें – chandrayaan-2

क्या है ये चंद्रयान-2(chandrayaan-2)?

चंद्रयान-2 यान भी अपने आप में बहुत खास हैं। इस यान का वजन 3800 किलो है। इसका पूरा खर्च 603 करोड़ रुपय है। चंद्रयान में 13 पेलोड हैं।इनका नाम आर्बिटर,लैंडर और रोवर रखा गया है।

 

chandrayaan-2

 

लैंडर का नाम इसरो के जनक डॉक्टर विक्रम ए साराभाई के नाम पर रखा गया है। जिस वक्त यह मिशन लॉन्च हुआ उस समय 250 से ज्यादा वैज्ञानिक इसरो के मिशन कंट्रोल सेंटर में मिशन पर निगरानी रख रहे थे।

 

क्यों चंद्रयान-2(chandrayaan-2) मिशन इसरो का सबसे मुश्किल मिशन-?
इसे इसरो का सबसे मुश्किल अभियान माना जा रहा है। सफर के आखिरी दिन जिस वक्त रोवर समेत यान का लैंडर चांद की सतह पर उतरेगा, वह वक्त भारतीय वैज्ञानिकों के लिए किसी परीक्षा से कम नहीं होगा। खुद इसरो के चेयरमैन के. सिवन ने इसे सबसे मुश्किल 15 मिनट कहा है। इस अभियान की महत्ता को इससे भी समझा जा सकता है कि अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने भी अपना एक पेलोड इसके साथ लगाया है।

 

 

कैसे भेजा जाएगा चंद्रयान-2(chandrayaan-2) को  चाँद पर ?

चंद्रयान-2 को बाहुबली रॉकेट से चांद पर भेजा जाएगा। इस रॉकेट का नाम GSLV Mk 3 है। इसे बाहुबली रॉकेट के नाम से जाना जाता है। ये सबसे ताकतवर रॉकेट में से एक है।

 

इसकी लंबाई 44 मीटर है और इसका वजन 640 टन है। GSLV Mk 3 भारत का सबसे बारा रॉकेट है ।

 

chandrayaan-2
GSLV Mk 3

 

क्या है यह  GSLV Mk 3  और कैसे कम करता है ? 

जीएसएलवी मार्क 3 से जुड़ी खास बातें…
– 640 टन का वजन, भारत का ये सबसे वजनी रॉकेट है
– नाम है जीएसएलवी मार्क 3 जो पूरी तरह भारत में बना है

– इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में 15 साल लगे. इस विशाल रॉकेट की ऊंचाई किसी 13 मंजिली इमारत के बराबर है और ये चार टन तक के उपग्रह लॉन्च कर सकता है.

– अपनी पहली उड़ान में ये रॉकेट 3136 किलोग्राम के सेटेलाइट को उसकी कक्षा में पहुंचाएगा

– इस रॉकेट में स्वदेशी तकनीक से तैयार हुआ नया क्रायोजेनिक इंजन लगा है, जिसमें लिक्विड ऑक्सीजन और हाइड्रोजन का ईंधन के तौर पर इस्तेमाल होता है.

 

कैसे काम करता है जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट- GSLV Mk 3

– पहले चरण में बड़े बूस्टर जलते हैं
– उसके बाद विशाल सेंट्रल इंजन अपना काम शुरू करता है
– ये रॉकेट को और ऊंचाई तक ले जाते हैं
– उसके बाद बूस्टर अलग हो जाते हैं और हीट शील्ड भी अलग हो जाती हैं
– अपना काम करने के बाद 610 टन का मुख्य हिस्सा अलग हो जाता है
– फिर क्रायोजेनिक इंजन काम करना शुरू करता है
– फिर क्रायोजेनिक इंजन अलग होता है
– उसके बाद संचार उपग्रह अलग होकर अपनी कक्षा में पहुंचता है
– भविष्य में ये रॉकेट भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने का काम करेगा.

 

 

chandrayaan-2 की पहली launching date ये थी-

चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग पहली बार अक्टूबर 2018 में टली इसरो चंद्रयान-2 को पहले अक्टूबर 2018 में लॉन्च करने वाला था।

बाद में इसकी तारीख बढ़ाकर 3 जनवरी और फिर 31 जनवरी कर दी गई। बाद में अन्य कारणों से इसे 15 जुलाई तक टाल दिया गया।

इस दौरान बदलावों की वजह से चंद्रयान-2 का भार भी पहले से बढ़ गया। ऐसे में जीएसएलवी मार्क-3 में भी कुछ बदलाव किए गए थे।

 

 

chandrayaan-2 launching लॉन्चिंग की तारीख एक हफ्ते आगे बढ़ी-

लॉन्चिंग की तारीख एक हफ्ते आगे बढ़ाने के बावजूद चंद्रयान-2 चांद पर तय तारीख 7 सितंबर को ही पहुंचेगा। इसे समय पर पहुंचाने का मकसद यही है कि लैंडर और रोवर तय शेड्यूल के हिसाब से काम कर सकें।

समय बचाने के लिए चंद्रयान पृथ्वी का एक चक्कर कम लगाएगा। पहले 5 चक्कर लगाने थे, पर अब 4 चक्कर लगाएगा। इसकी लैंडिंग ऐसी जगह तय है, जहां सूरज की रोशनी ज्यादा है।

रोशनी 21 सितंबर के बाद कम होनी शुरू होगी। लैंडर-रोवर को 15 दिन काम करना है, इसलिए समय पर पहुंचना जरूरी है।

 

 

रॉकेट में तकनीकी खराबी-chandrayaan-2 launch-change the launchung date-

 

गत 15 जुलाई को रॉकेट में तकनीकी खामी का पता चलने के बाद इसका प्रक्षेपण टाल दिया गया था। इससे पहले इसरो ने शनिवार को चंद्रयान-2 की लॉन्च रिहर्सल पूरी की थी।

चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग 15 जुलाई की रात 2.51 बजे होनी थी, जो तकनीकी खराबी के कारण टाल दी गई थी। इसरो ने एक हफ्ते के अंदर सभी तकनीकी खामियों को ठीक कर लिया है।

 

GSLV Mk 3

 

 

15 जुलाई की रात मिशन की शुरुआत से करीब 56 मिनट पहले इसरो ने ट्वीट कर लॉन्चिंग आगे बढ़ाने का ऐलान किया था।

इसरो के एसोसिएट डायरेक्टर (पब्लिक रिलेशन) बीआर गुरुप्रसाद ने बताया था कि लॉन्चिंग से ठीक पहले लॉन्चिंग व्हीकल सिस्टम में खराबी आ गई थी।

इस कारण चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग टाल दी गई। इसके बाद शनिवार को इसरो ने ट्वीट किया कि जीएसएलवी एमके3-एम1/चंद्रयान-2 की लॉन्च रिहर्सल पूरी हो चुकी है। इसका प्रदर्शन सामान्य है।

 

उस दिन इसका प्रक्षेपण तड़के दो बजकर 51 मिनट पर होना था, लेकिन प्रक्षेपण से 56 मिनट 24 सेकंड पहले रॉकेट में तकनीकी खामी का पता चलने के बाद चंद्रयान-2 की उड़ान टाल दी गई थी।

उस दिन राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द भी प्रक्षेपण स्थल पर मौजूद थे।

 

 

21 जुलाई को हुई -chandrayaan-2 की सफल लौंचिंग-

कल यानी रविवार की शाम छह बजकर 43 मिनट पर प्रक्षेपण के लिए 20 घंटे की उल्टी गिनती शुरू हुई थी। इसरो का सबसे जटिल और अब तक का सबसे प्रतिष्ठित मिशन माने जाने वाले ‘चंद्रयान-2 के साथ रूस, अमेरिका और चीन के बाद भारत चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला चौथा देश बन जाएगा। चंद्रयान-2 की लॉन्चिंग श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से की गई।

 

chandrayaan-2 launch
chandrayaan-2

 

 

चंद्रयान-2 को 22 जुलाई को दोपहर 2.43 बजे देश के सबसे ताकतवर बाहुबली रॉकेट GSLV-MK3 से लॉन्च किया गया.

चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान) प्रक्षेपण के 16 मिनट बाद प्रक्षेपण यान से अलग हो गया और पृथ्वी की पार्किंग कक्षा में प्रवेश कर गया। इसके बाद उसने सात सितंबर को चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने के लिए अपनी 30844 लाख किलोमीटर की 48 दिन तक चलने वाली यात्रा शुरू कर दी।

 

 

 

तीन हिस्सों में बंटा है चंद्रयान-2

चंद्रयान-2 का ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान)

चंद्रयान-2 के तीन हिस्से हैं-ऑर्बिटर, लैंडर और रोवर। अंतरिक्ष वैज्ञानिक विक्रम साराभाई के सम्मान में लैंडर का नाम विक्रम रखा गया है। रोवर का नाम प्रज्ञान है, जो संस्कृत शब्द है, जिसका अर्थ होता है ज्ञान। चांद की कक्षा में पहुंचने के बाद लैंडर-रोवर अपने ऑर्बिटर से अलग हो जाएंगे।

 

chandrayaan-2

 

 

 

लैंडर विक्रम सात सितंबर को चांद के दक्षिणी ध्रुव के नजदीक उतरेगा। लैंडर उतरने के बाद रोवर उससे अलग होकर अन्य प्रयोगों को अंजाम देगा। लैंडर और रोवर के काम करने की कुल अवधि 14 दिन की है। चांद के हिसाब से यह एक दिन की अवधि होगी। वहीं ऑर्बिटर सालभर चांद की परिक्रमा करते हुए विभिन्न प्रयोगों को अंजाम देगा।

 

 

क्या है यह ऑर्बिटर?
वजन- 2379 किलो
मिशन की अवधि – 1 साल

आर्बिटर चंद्रमा की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई वाली कक्षा में चक्कर लगाएगा। इसका काम चांद की सतह का निरीक्षण करना और खनिजों का पता लगाना है। इसके साथ 8 पेलोड भेजे जा रहे हैं, जिनके अलग-अलग काम होंगे। इसके जरिए चांद के अस्तित्व और उसके विकास का पता लगाने की कोशिश होगी। बर्फ के रूप में जमा पानी का पता लगाया जाएगा। बाहरी वातावरण को स्कैन किया जाएगा।

chandrayaan-2 launch moon mission GSLV MK-3 ISRO
ORBITer

 

 

क्या है यह 10- लैंडर (विक्रम)?
वजन- 1471 किलो
मिशन की अवधि – 15 दिन

इसरो का यह पहला मिशन है, जिसमें लैंडर जाएगा। लैंडर आर्बिटर (विक्रम) से अलग होकर चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। विक्रम लैंडर चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग करेगा। यह 2 मिनट प्रति सेकेंड की गति से चंद्रमा की सतह पर उतरेगा। विक्रम लैंडर के अलग हो जाने के बाद, यह एक ऐसे क्षेत्र की ओर बढ़ेगा जिसके बारे में अब तक बहुत कम खोजबीन हुई है। लैंडर चंद्रमा की झीलों को मापेगा और अन्य चीजों के अलावा लूनर क्रस्ट में खुदाई करेगा।

 

 lander

 

क्या है यह रोवर (प्रज्ञान)?

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